Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, ४१.] कदिअणियोगद्दारे वड्डमाणाउविसए अण्णाइरियाभिमय [१२३
(संपहि कुमारकालो उच्चदे- चइत्तमासस्स दो दिवसे |२| वइसाहमादि कादूण अट्ठावीस वासाणि |२८| पुणो वइसाहमादि कादूण जाव कत्तिओ त्ति सत्तमासे च कुमारतणेण गमिय| ७ | तदो मग्गसिरकिण्हपक्खदसमीए णिक्खंत्तो त्ति एदस्स कालस्स पमाणं पारसदिवस-सत्तमासाहियअट्ठवीसवासमेतं होदि | २० | एत्थुवउज्जतीओ गाहाओ
मणुवत्तणसुहमउलं देवकयं सेविऊण वासाई । अट्ठावीसं सत्त य मासे दिवसे य बारसयं ॥ ३० ॥ आहिणिबोहियबुद्धो छटेण य मग्गसीसबहुले दु । दसमीए णिक्खंतो सुरमहिदो णिक्खमणपुज्जो' ॥ ३१ ॥
एवं कुमारकालपरूवणा कदा । संपधि छदुमत्थकालो वुच्चदे । तं जहा- मग्गसिरकिण्हपक्खएक्कारसिमादि काऊण जाव मग्गसिरपुण्णिमा त्ति वीसदिवसे |२०| पुणो पुस्समासमादि कादूण बारसवासाणि |१२| पुणो तं चेव मासमादि कादूण चत्तारिमासे च|४| वइसाहजोण्णपक्खपंचवीसदिवसे
अब कुमारकालको कहते हैं- चैत्र मासके दो दिन [२], वैशाखको आदि लेकर अट्ठाईस वर्ष [२८], पुनः वैशाखको आदि करके कार्तिक तक सात मासको [७] कुमार स्वरूपसे विताकर पश्चात् मगसिर कृष्ण पक्षकी दशमीके दिन दीक्षार्थ निकले थे। अतः इस कालका प्रमाण बारह दिन और सात मास अधिक अट्ठाईस वर्ष मात्र होता है [२८ वर्ष ७ मास १२ दिन] । यहां उपयुक्त गाथायें
वर्धमान स्वामी अट्ठाईस वर्ष सात मास और बारह दिन देवकृत श्रेष्ठ मानुषिक सुखका सेवन करके आभिनिबोधिक शानसे प्रबुद्ध होते हुए षष्ठोपवासके साथ मगसिर कृष्णा दशमीके दिन गृहत्याग करके सुरकृत महिमाका अनुभव कर तप कल्याण द्वारा पूज्य हुए ॥ ३०-३१॥
इस प्रकार कुमारकालकी प्ररूपणा की है। अब छद्मस्थकाल कहते हैं। वह इस प्रकार है- मगसिर कृष्ण पक्षकी एकादशीको आदि करके मगसिरकी पूर्णिमा तक बीस दिन [२०], पुनः पौष मासको आदि करके बारह वर्ष [१२], पुनः उसी मासको आदि करके चार मास [४] और वैशाख शुक्ल पक्षकी दशमी तक वैशाखके पच्चीस दिनोंको
१ भयध. १, पृ. ७८.
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