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१२२] छक्खंडागमे यणाखंड
[१, १,१४. अट्ठमासे गब्भम्मि गमिय चइत्तमासम्मि सुक्कपक्खतेरसीए उप्पण्णा त्ति अट्ठावीस दिवसा तत्थ लब्भंति । एदेसु पुव्विल्लदसदिवसेसु पक्खित्तेसु मासो अढदिवसाहिओ लब्भदि । तुम्मि अट्ठमासेसु पक्खित्ते अढदिवसाहियणवमासा गम्भत्थकालो होदि । तस्स संदिट्ठी | || एत्थुवउज्जतीओ गाहाओ---
सुरमहिदो च्चुदकप्पे भोगं दिव्वाणुभागमणुभूदो । पुप्फुत्तरणामादो विमाणदो जो चुदो संतो ॥ २६ ॥ बाहत्तरिवासाणि य थोवविहूणाणि लद्धपरमाऊ । आसाढोण्णपक्खे छट्ठीए जोणिमुवयादो ॥ २७ ॥ कुंडपुरपुरवरिस्सरसिद्धत्थक्खत्तियस्स णाहकुले । तिसिलाए देवीए देवीसदसेवमाणाए ॥ २८ ॥ अच्छित्ता णवमासे अट्ठ य दिवसे चइत्तसियपक्खे । तेरसिए रत्तीए जादुत्तरफग्गुणीए दु' ॥ २९ ॥
एवं गब्भट्टिदकालपरूवणा कदा।।
गर्भमें विताकर चैत्र मासमें शुक्ल पक्षकी त्रयोदशीको उत्पन्न हुए थे, अतः अट्ठाईस दिन चैत्र मासमें प्राप्त होते हैं । इनको पूर्वोक्त दश दिनों में मिला देनेपर आठ दिन सहित एक मास प्राप्त होता है। उसे आठ मासोंमें मिलानेपर आठ दिन अधिक नौ मास गर्भस्थकाल होता है। उसकी संदृष्टि [९ मा. ८ दि.] । यहां उपयुक्त गाथायें
वर्धमान भगवान् अच्युत कल्पमें देवोंसे पूजित हो दिव्य प्रभावसे संयुक्त भोगोंका अनुभव कर पुनः पुष्पोत्तर नामक विमानसे च्युत होकर कुछ कम बहत्तर वर्ष प्रमाण उत्कृष्ट आयुको प्राप्त करते हुए आषाढ़ शुक्ल पक्षकी षष्ठीके दिन योनिको प्राप्त हुए अर्थात् गर्भमें आये ॥ २६-२७॥
तत्पश्चात् कुण्डलपुर रूप उत्तम पुरके ईश्वर सिद्धार्थ क्षत्रियके नाथ कुलमें सैकड़ों देवियोंसे सेव्यमान त्रिशला देवीके [गर्भमें ] नौ मास और आठ दिन रहकर चैत्र मासके शुक्ल पक्षमें त्रयोदशीकी रात्रिमें उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रमें उत्पन्न हुए ॥ २८-२९ ॥
इस प्रकार गर्भस्थित कालकी प्ररूपणा की है।
१ जयध. १, पृ. ७६-७८. नवमासेष्वतीतेषु स जिनोऽष्टदिनेषु च । उत्तराफाल्गुनीविदो वर्तमानेऽजनि प्रभुः॥र.पु. २-२५.
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