Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१४० ]
छक्खंडागमे यणाखंड
[ ४, १२, ४५.
संखेज्जाणतएण तिविहं । जीवभावपमाणं आभिणिबोहिय- सुदोधि-मणपज्जव केवलणाणभेएण पंचविहं । एवं पमाणावक्कम सरूवपरूवणा कदा |
ससमय-परसमय-तदुभयवत्तव्वदाभेदेण वत्तव्वदा तिविहा' । जदि ससमओ' चेव परुविज्जदि सा ससमयैवत्तव्वदा । जदि परसमओ चेव परुविज्जदि सा परसमयवत्सव्वदा । दि दो वि रुविज्जति सा तदुभयवत्तव्वदा । एवं वत्तव्वदुवक्कम सरूवपरूवणा कदा | अत्थाहियारो अणेयविहो, तत्थ संखाणियमाभावाद । एवमत्थहियारो वक्कमसरूवपरूवणा कदा | वृत्तं च-
तिविहाय आणुपुत्री दसधा णामं च छन्विहं माणं ।
तव्वदा यतिविहा विविहो अत्याहियारो य ॥ ४४ ॥
एवमुत्रक्कम सरूवरूणा कदा |
संपहि णिक्खेवसरूवपरूवणा कीरदे । तं जहा - बज्झत्थवियपपरूवणा णिक्खेवो
प्रमाण आभिनिबोधिक, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल ज्ञानके भेदसे पांच प्रकार है । इस प्रकार प्रमाणोपक्रमके स्वरूपकी प्ररूपणा की है ।
स्वसमयवक्तव्यता, परसमयवक्तव्यता और तदुभयवक्तव्यता के भेद से वक्तव्यता तीन प्रकार है । यदि स्वसमयकी ही प्ररूपणा की जाती है तो वह स्वसमयवक्तव्यता है। यदि परसमयकी ही प्ररूपणा की जाती है तो वह परसमयवक्तव्यता है । यदि दोनोंकी ही प्ररूपणा की जाती है तो वह तदुभयवक्तव्यता है । इस प्रकार वक्तव्यतोपक्रमके स्वरूपकी प्ररूपणा की है ।
अर्थाधिकार अनेक प्रकार है, क्योंकि, उसमें संख्याका नियम नहीं है । इस प्रकार अर्थाधिकारोपक्रमके स्वरूपकी प्ररूपणा की है। कहा भी है
आनुपूर्वी तीन प्रकार, नाम दश प्रकार, प्रमाण छह प्रकार, वक्तव्यता तीन प्रकार और अर्थाधिकार अनेक प्रकार है ॥ ४४ ॥
इस प्रकार उपक्रमके स्वरूपकी प्ररूपणा की है ।
अब निक्षेप स्वरूपकी प्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है- बाह्यार्थ के विकल्पोंकी
१ जयध. १, पृ. ९६.
३ प्रतिषु 'समय' इति पाठः ।
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२ प्रतिषु ' समओ ' इति पाठ ।
४ ष. खं. पु. १ पृ. ७२.
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