Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
४, १,४५. ]
कदिअणियोगद्दारे मदिणाणपरूवणा
[ १६१
3
मतिपूर्वं, मतिकारणमिति यावत् कार्यं पालयति पूरयतीति वा पूर्वशब्दनिष्पत्तेः' । मतिपूर्वत्वाविशेषात् श्रुताविशेष इति चेन्न, मतिपूर्वत्वाविशेषेऽपि प्रतिपुरुषं हि श्रुतावरणक्षयोपशमाः बहुधा भिन्नाः, तद्भेदात् बाह्यनिमित्तभेदाच्च श्रुतस्य प्रकर्षाप्रकर्षयोगो भवेदिति । यदा शब्दपरिणतपुद्गलस्कन्धात् आहितवर्ण-पद-वाक्यादिभेदाच्च आद्यश्रुतविषयभावमापन्नादविनाभाविनः कृतसंगीतिर्जनो घटाज्जलधारणादिकार्यसम्बन्ध्यन्तरं प्रतिपद्यते अग्न्यादेव भस्मादिद्रव्यं तदा श्रुताच्छ्रुतप्रतिपत्तिरिति कृत्वा मतिपूर्वलक्षणमव्यापीति चेत्तन्न, व्यवहितेऽपि पूर्वशब्दप्रवृत्तेः । तद्यथा— पूर्व मथुरायाः पाटलिपुत्रमिति । ततः साक्षान्मतिपूर्वं परम्परामतिपूर्वमपि मतिपूर्वग्रहणेन गृह्यते ।
निमित्त से होनेवाला है, क्योंकि, ' कार्यको जो पालन करता है अथवा पूर्ण करता है यह पूर्व है' इस प्रकार पूर्व शब्द सिद्ध हुआ है ।
शंका - मतिपूर्वत्वकी समानता होनेसे श्रुतज्ञानमें कोई भेद नहीं होगा ?
समाधान - ऐसा नहीं है, क्योंकि, मतिपूर्वत्व के समान होनेपर भी प्रत्येक पुरुषमें श्रुतज्ञानावरण के क्षयोपशम बहुधा भिन्न होते हैं, अतः उनके भेद से और बाह्य निमित्तोंके भी भेद से श्रुतके हीनाधिकताका सम्बन्ध होता है ।
शंका- - जब वर्ण, पद एवं वाक्य आदि भेदोंको धारण करनेवाले तथा आद्य श्रुतविषयताको प्राप्त हुए अविनाभावी शब्दपरिणत पुद्गलस्कन्धसे संकेत युक्त पुरुष घटसे जलधारणादि कार्य रूप अन्य सम्बन्धीको अथवा अग्नि आदिसे भस्म आदिको जानता है तब श्रुतसे श्रुतका लाभ होता है, अतः श्रुतका मतिपूर्वत्व लक्षण अव्याप्ति दोष युक्त ( लक्ष्य के एक देशमें रहनेवाला ) है ?
समाधान - ऐसा नहीं है, क्योंकि, व्यवधानके होनेपर भी पूर्व शब्दकी प्रवृत्ति होती है। जैसे मथुरा से पूर्व में पाटलिपुत्र है । इसलिये मतिपूर्व-ग्रहणसे साक्षात् मतिपूर्वक और परम्परा से मतिपूर्वक भी ग्रहण किया जाता है ।
१ त. रा. १, २०, २. मइपुत्रं सुयमुत्तं न मई सुयपुत्रिया विसेसोऽयं । पुत्रं पूरण- पालणभावाओ जं मई तस्स || पूरिज्जइ पालिज्जह दिज्जइ वा जं मइए णामइणा । पालिज्जइ य मईए गहियं इहरा पणस्सेज्जा ॥ वि. भा. १०५ -६.
२ त. रा. १,२०, ९.
३ यदा शब्दपरिणत
पद-वाक्यादिभावाच्चक्षुरादिविषयाच्चाऽद्यश्रुतविषयभावमापन्नादविनाभाविनः कृत संगतिर्जनो... धूमादेवीग्न्यादिद्रव्यं तदा ... लक्षणमव्यापीति तन, किं कारणम्, तस्योपचारतो मतित्वसिद्धेः । मतिपूर्वं हि श्रुतं क्वचिन्मतिरित्युपचर्यते । अथवा व्यवहिते पूर्वशब्दो वर्तते तद्यथा ........ । त. रा. १, २०, १०.
छ. क. २१.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org