Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वैयणाखंड
[४, १, १५. (चत्तारि धणुसयाई चउसट्ठ सयं च तह य धणुहाणं । पासे रसे य गंधे दुगुणा दुगुणा असण्णि त्ति ॥ ४८ ॥ उणतीसजोयणसया चउवण्णा तह य होंति णायव्वा । चउरिदियस्स णियमा चक्खुप्फासो सुणियमेण ॥ ४९ ॥ उणसटिजोयणसया अट्ठ य तह जोयणा मुणेयत्वा । पंचिंदियसण्णीणं चक्खुप्पासो मुणेयवो ॥ ५० ॥
अट्टेव धणुसहस्सा विसओ सोदस्स तह असण्णिस्स । __ इय एदे णायव्वा पोग्गलपरिणामजोएण' ॥ ५१ ॥ पासे रसे य गंधे विसओ णव जोयणा मुणेयव्वा । बारह जोयण सोदे चक्खुस्सुडू पवक्खामि ॥ ५२ ॥ सत्तेतालसहस्सा बे चेव सया हवंति तेवढा । चक्खिदियस्स विसओ उक्कस्सो होदि अदिरित्तो ॥ ५३॥)
चार सौ धनुष, चौंसठ धनुष तथा सौ धनुष प्रमाण कमसे एकेन्द्रिय, दीन्द्रिय और त्रीन्द्रिय जीवोंका स्पर्श, रस एवं गन्ध विषयक क्षेत्र है। आगे असंज्ञी पर्यन्त यह विषयक्षेत्र दूना दूना होता गया है ॥ ४८ ।।
____चतुरिन्द्रिय जीवके चक्षु इन्द्रियका विषय नियमसे उनतीस सौ चौवन योजन प्रमाण है ॥४९॥
पंचेन्द्रिय संज्ञी जीवोंके चक्षु इन्द्रियका विषय उनसठ सौ आठ योजन प्रमाण जानना चाहिये ॥५०॥
__ असंही पंचेन्द्रिय जीवके श्रोत्रका विषय आठ हजार धनुष प्रमाण है। इस प्रकार पुद्गलपरिणाम योगसे ये विषय जानना चाहिये ॥ ५१ ॥
संझी पंचेन्द्रिय जीवोंके स्पर्श, रस वगन्ध विषयक क्षेत्र नौ योजन प्रमाण तथा भ्रोत्रका बारह योजन प्रमाण जानना चाहिये । चक्षुके विषयको आगे कहते हैं ॥ ५२ ॥
चक्षु इन्द्रियका उत्कृष्ट विषय सैंतालीस हजार दो सौ तिरेसठ योजनसे कुछ अधिक [*] है ॥ ५३ ॥
१ प्रतिषु मुणियणेण' इति पाठः ।
२ धणुवीसडदसयकदी जोयणकादालहीणतिसहस्सा | अट्ठसहस्स धणूणं विसया दुगुणा असणि ति॥ गो. जी. १६७.
३ सणिस्स बार सोदे तिण्हे णव जोयणाणि चखुस्स । सत्तेताल सहस्सा बेसदतेसद्विमदिरेया ॥ गो.जी.. १६८. भ. भ. प. ११६७.
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