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१३८] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[ १, १, १५. गामाणि किंपदाणि ? दव्वसंजोगपदाणि, भासा-पोग्गलदव्वसंजोगेण तदुप्पत्तीदो। पमाणभावाणं को विसेसो ? ण, सगद-इयत्तापरिच्छेदकारणं पमाणं , तव्विवरीओ भावो ति तेसिं भेदुवलंभादो । धम्मत्थिओ अधम्मत्थिओ कालो पुढवी आऊ तेऊ इच्चादीणि अणादियसिद्धंतपदाणि । भाव-गुणपडिसेहदुवारेणुप्पण्णणामाणि भावसंजोगैपद-गोण्णाणि हवंति, अवयव. सहस्सेव भाव-गुणाणं देसामासयत्तब्भुवगमादो । एवं णामोवक्कमसरूवपरूवणा कदा ।
णाम-ट्ठवण-दव्व-खेत्त-काल-भावपमाणभेदेण पमाणं छविहं । तत्थ णामपमाणं पमाण
समाधान-ये द्रव्यसंयोगपद है, क्योंकि, उनकी उत्पत्ति भाषा ( द्राविडी आदि) रूप पुद्गल द्रव्यके संयोगसे है।
शंका -प्रमाण और भावके क्या भेद है ?
समाधान-नहीं, स्वगत अर्थात् अपने वाच्यगत परिमाणके जाननेका कारण प्रमाण और इससे विपरीत भाव होता है, इस प्रकार उन दोनोंमें भेद पाया जाता है।
धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, काल, पृथिवी, अप् और तेज, इत्यादिक अनादिकसिद्धान्तपद हैं । भाव और गुणके प्रतिषेध द्वारा उत्पन्न नाम क्रमशः भावसंयोगपद ब गौण्यपद होते हैं, क्योंकि, अवयव शब्दके समान भाव और गुणको देशामर्शक स्वीकार किया गया है।
- विशेषार्थ-जिस प्रकार अवयवके सद्भाव व अभावके वाचक पदोंका अन्तर्भाव अवयवपदोंमें किया है, उसी प्रकार भावसंयोग व भावासंयोग वाचक पदोंका भावसंयोगपदोंमें एवं गुणके सद्भाव व असद्भाव वाचक पदोंका अन्तर्भाव गौण्य पदोंमें करना चाहिये।
इस प्रकार नामोपक्रम स्वरूपकी प्ररूपणा की है।
नामप्रमाण, स्थापनाप्रमाण, द्रव्यप्रमाण, क्षेत्रप्रमाण, कालप्रमाण और भावप्रमाणके भेदसे प्रमाण छह प्रकार है। उनमेंसे अपनेमें व बाह्य पदार्थमें वर्तमान प्रमाण शब्द नाम
१ प्रतिषु 'आउ तेउ' इति पाठः ।
२. से किं तं अणाइसिद्धतेणमित्यादि-अमनं अन्तो वाच्य-वाचकरूपतया परिच्छेदः, अनादिसिद्धश्चासावन्तश्चानादिसिद्धान्तस्तेन; अनादिकालादारभ्येदं वाचकमिदं तु वाच्यमित्येवं सिद्धः- प्रतिष्ठितो यो सावन्तःपरिच्छेदस्तेन किमपि नाम भवतीत्यर्थः । अनु. सू. ( मलय. वृत्ति ) १३०.
३ प्रतिषु ‘भावासेजोग' इति पाठः ।
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