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१, १, ४५.] कदिअणियोगद्दारे णामोवक्कमपरूवणा
[१३७ गलयंडो दीहणासो लंबकण्णो त्ति उवचिदावयवणिबंधणाणि; छिण्णकरो छिण्णणासो काणो कुंटो इच्चादीणि अवचिदणिबंधणाणि ।
संजोगो दव्व-खेत्त-काल-भावभेएण चउब्विहो । तत्थ धणुहासि-परसुआदिसंजोगेण संजुत्तपुरिसाणं धणुहासि-परसुणामाणि दव्वसंजोगपदाणि। भारहओ ऐरावओ माहुरो मागहो त्ति खेत्तसंजोगपदाणि णामाणि । सारओ वासंतओ त्ति कालसंजोगपदणामाणि । णेरइओ तिरिक्खो कोही माणी बालो जुवाणो इच्चेवमाईणि भावसंजोगपदाणि । भाव-गुणाणं को विसेसो ? ण, जावदव्वभाविणो गुणा, तविवरीया भावा इदि भेदुवलंभादो । दमिलो' अंधो कण्णाडो त्ति
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लम्बकर्ण, ये नाम उपचितावयव अर्थात् अवयवोंकी वृद्धिके निमित्तसे; तथा छिन्नकर, छिन्ननास, काना एवं कुण्ट (हस्त हीन) इत्यादि नाम अवयवोंकी हानिके निमित्तसे प्रसिद्ध हैं।
__ संयोग द्रव्य, क्षेत्र, काल, और भावके भेदसे चार प्रकार है । उनमें धनुष, असि व परशु आदिके संयोगसे संयुक्त पुरुषोंके धनुष, असि व परशु नाम द्रव्यसंयोगपद हैं। भारत, ऐरावत, माथुर व मागध, ये क्षेत्रसंयोगपद नाम हैं। शारद व वासंतक ये कालसंयोगपद नाम हैं । नारक, तिर्यंच,क्रोधी,मानी, बाल एवं युवा, इत्यादिक भावसंयोग पद हैं।
शंका-भाव और गुणमें क्या भेद है ?
समाधान नहीं, गुण यावद्द्व्य भावी अर्थात् समस्त द्रव्यमें रहनेवाले होते हैं, परन्तु भाव यावद्रव्यभावी नहीं होते; यह उन दोनोंमें भेद है।।
शंका-द्रविड, आन्ध्र और कर्नाटक, ये नाम कौनसे पद हैं ?
१ प्रतिषु ' कुंठो' इति पाठः।
२. खं. पु. १, पृ. ७७. सिलीवदी गलगंडो दीहणासो लंबकण्णो इच्चेवमादीणि णामाणि प्रवचयपदाणि, सरीरे उबचिदमवयवमवेक्खिय एदेसि णामाणं पउत्तिदंसणादो। छिण्णकण्णो किण्णणासो काणो कुंठो [कुंटो] खंजो बहिरो इच्चाईणि णामाणि अवचयपदाणि, सरीरावयवविगलत्तमक्खिय एदेसिं णामाणं पउत्तिदंसणादो। जयध. १, पृ. ३३.
३ प्रतिषु 'आरहओ' इति पाठः।। ४ ष. खं. पु. १, पृ. ७७-७८. दव्व-खेत्त-काल-भावसंजोयपदाणि रायासि-घणु-हर-सुरलोयणयर-भारयअइरावय-सायर (सारय-) वासंतय-कोहि-माणिइच्चाईणि णामाणि वि आदाणपदे चेव णिवदंति, इदमेदस्स अस्थि एत्थ वा इदमथि ति बिवक्खाए एदेसि णामाणं पवुत्तिदंसणादो। जयध. १, पृ. ३३.
५ प्रतिषु 'धमिलो' इति पाठः ।
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