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४, १, ४५.] कदिअणियोगद्दारे अणुगमपरूवणा
[१४१ णाम, अणधिगदत्थणिराकरणदुवारेण अधिगदत्थपरूवणा वा। णिक्खेवेण विणा परूवणा किण्ण कीरदे ? ण, तेण विणा परूवणाणुववत्तीदो । सो च अणेयविहो
जत्थ बहु जाणेज्जो अपरिमियं तत्थ णिक्खिव' णियमा ।
जत्थ य बहुं ण जाणदि चउट्टयं तत्थ णि विखबउ ॥ ४५ ॥ इदि वयणादो । एवं णिक्खेवसरूवपरूवणा कदा ।
(संपहि अणुगमत्थं वत्तइस्सामो- जम्हि जेण वा वत्तव्वं परूविज्जदि सो अणुगमो । अहियारसण्णिदाणमणिओगद्दाराणं जे अहियारा तेसिमणुगमो त्ति सण्णा, जहा वेयणाए पदमीमांसादिः। सो च अणुगमो अणेयविहो, संखाणियमाभावादो । अथवा, अनुगम्यन्ते जीवादयः पदार्थाः अनेनेत्यनुगमः । किं प्रमाणम् ? निर्बाधबोधविशिष्टः आत्मा प्रमाणम् । संशय
प्ररूपणा अथवा अनधिगत पदार्थके निराकरण द्वारा अधिगत अर्थकी प्ररूपणाका नाम निक्षेप है।
शंका-निक्षेपके विना प्ररूपणा क्यों नहीं की जाती ? समाधान-नहीं, क्योंकि उसके विना प्ररूपणा बन नहीं सकती।
वह निक्षेप अनेक प्रकार है,क्योंकि, जहां बहुत ज्ञातव्य हो वहां नियमसे अपरिमित निक्षेपोंका प्रयोग करना चाहिये । और जहां बहुतको नहीं जानना हो वहां चार निक्षेपका उपयोग करना चाहिये ।। ४५ ।।
ऐसा वचन है । इस प्रकार निक्षेपके स्वरूपकी प्ररूपणा की है।
अब अनुगमके अर्थको कहते हैं- जहां या जिसके द्वारा वक्तव्यकी प्ररूपणा की जाती है वह अनुगम कहलाता है। अधिकार संज्ञा युक्त अनुयोगद्वारोंके जो अधिकार होते हैं उनका 'अनुगम' यह नाम है, जैसे-वेदनानुयोगद्वारके पदमीमांसा आदि अनुगम । वह अनुगम अनेक प्रकार है, क्योंकि, उसकी संख्याका कोई नियम नहीं है । अथवा, जिसके द्वारा जीवादिक पदार्थ जाने जाते हैं वह अनुगम कहलाता है।
शंका-प्रमाण किसे कहते हैं ? समाधान-निर्बाध शानसे विशिष्ट आत्माको प्रमाण कहते हैं ।
१ प्रतिषु ‘णिक्खेवे ' इति पाठः । २ प्रतिषु । णिविखवओ' इति पाठः । ष. खं. पु. १, पृ. ३..
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