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४, १, ४५.] कदिअणियोगहारे णामोवक्कमपरूवणा क्कम्मो तिविहो पुव्वाणुपुव्वी पच्छाणुपुब्वी जहा-तहाणुपुव्वी चेदि । उद्दिट्टकमेण अत्याहियारपरूवणा पुव्वाणुपुव्वी णाम । विलोमेण परूवणा पच्छाणुपुव्वी णाम । अणुलोम-विलोमेहि विणा परूवणा जहा-तहाणुपुवी । ण च परूवणाए चउत्थो पयारो अस्थि, अणुवलंभादो।
णामोवक्कमो दसविहो गोण्ण-णोगोण्ण-आदाण-पडिवक्ख-पाधण्ण-णाम-पमाण-अवयवसंजोग-अणादियसिद्धंतपदभेएण। गुणेण णिप्पण्णं गोणं । जहा सूरस्स तवण-भक्खरदिणयरसण्णा, वड्डमाणजिणिंदस्स सव्वण्णु-वीयराय-अरहंत-जिणादिसण्णाओ' । चंदसामी सूरसामी इंदगोवो इच्चादिणामाणि णोगोण्णपदाणि, णामिल्लए पुरिसे सद्दत्थाणुवलंभादों। छत्ती मउली गब्भिणी अइहवा इच्चाईणि आदाणपदणामाणि, इदमेदस्स अत्थि त्ति विवक्खाए
है- पूर्वानुपूर्वी, पश्चादानुपूर्वी और यथा तथानुपूर्वी । उद्दिष्टके क्रमसे अर्थाधिकारकी प्ररूपणाका नाम पूर्वानुपूर्वी है। विरुद्ध क्रमसे की गई प्ररूपणा पश्चादानुपूर्वी कहलाती है । अनुलोम व प्रतिलोम क्रमके विना जो प्ररूपणा की जाती है उसका नाम यथा-तथानुपूर्वी है। इनके अतिरिक्त प्ररूपणाका और कोई चतुर्थ प्रकार नहीं है, क्योंकि, वह पाया नहीं जाता।
गौण्यपद, नोगौण्यपद, आदानपद, प्रतिपक्षपद, प्राधान्यपद, नामपद, प्रमाणपद, अवयवपद, संयोगपद और अनादिकसिद्धान्तपदके भेदसे नामोपक्रम दश प्रकार है। जो पद गुणसे सिद्ध है वह गौण्य है । जैसे सूर्यके तपन, भास्कर एवं दिनकर नाम; वर्धमान जिनेन्द्र के सर्वश, वीतराग, अरहन्त व जिन आदि नाम । चन्द्रस्वामी, सूर्यस्वामी व इन्द्रगोप इत्यादि नाम नोगौण्य पद हैं; क्योंकि, इन नामोंसे युक्त पुरुषमें शब्दोंका अर्थ नहीं पाया जाता । छत्री, मौली, गर्भिणी और अविधवा इत्यादिक आदानपद रूप नाम हैं,
१ष. खं. पु. १, पृ. ७३. आणुपुव्वी तिविहा। एदस्स मुत्तस्स अत्थो वुच्चदे। तं जहापुव्वाणुपुव्वी, पच्छाणुपुव्वी, जत्थतत्थाणुपुची चेदि । जं जेण कमेण सुत्तकारेहि ठइदमुप्पण्णं वा तस्स तेण कमेण गणणा पुवाणुपुव्वी णाम | तस्स विलोमेण गणणा पच्छाणुपुची। जत्थ वा तत्थ वा अप्पणो इच्छिदमादि कादण गणणा जत्थतत्थाणु युव्वी। एवमाणुपुब्बी तिविहा चेव, अणुलोम-पडिलोम-तदुभएहि वदिरित्तगणणकमाणुवलंभादो। जयध. १,पृ. २७.
२ ष. खं. पु. १, पृ. ७४-७९. णामं छविहं । एदस्स मुत्तस्स अस्थपरूवणं कस्सामो। तं जहागोणपदे णोगोणपदे आदाणपदे पडिववखपदे अवचयपदे उवचयपदे चेदि । जयध. १, पृ. ३०.
३ गुणेण णिप्पणं गोण्णं । [ जहा सूरस्स तवण-भक्खर- ] दिणयरसण्णाओ, वडमाणजिणिंदस्स सब्बण्हुबीयराय-अरहंत-जिणादिसण्णाओ। जयध. १, पृ ३१.
४ चंदसामी सूरसामी इंदगोत्र इच्चादिसण्णाओ णोगोण्णपदाओ, णामिल्लए पुरिसे णामत्थाणुवलंभादो।। मगध. १, पृ. ३१.
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