Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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कदिअणियोगद्दारे देसोहिणाणपरूवणा
[३५ पुच्छिदे अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता चेव होति.। कुदो ? आइरियपरंपरागदुवदेसादो। अहवा ण णव्वदे, जुत्ति-सुत्ताणमणुवलंभादो । खेत्तवियप्पेहिंतो दव्य-भाववियप्पा पुण असंखेज्जगुणा । गुणगारो अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो, अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तदव्व-भाववियप्पेसु गदेसु खेत्तम्मि एगागासपदेसवड्डीदो । एवं दुचरिमसमाणवड्डिपरूवणा कदा ।
पुणो दुचरिमसमाणवड्डीए ओरालियदव्वमवट्ठिदविरलणाए समखंडं करिय दिण्णे तदणंतरदव्ववियप्पो होदि । दुचरिमसमाणवड्डीए भावे तप्पाओग्गासंखेज्जरूवेहि गुणिदे तदणंतरभाववियप्पो होदि । एवमंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तेसु दव्व-भाववियप्पेसु गदेसु खेत्तम्मि एगो आगासपदेसो वड्वदि । एवमेदेण कमेण णेदव्वं जाव दव्व-भावाणं दुचरिमवियप्पो त्ति । पुणो चरिमदेसोहि उक्कस्सदवे उप्पाइज्जमाणे दुचरिमओरालियदव्वमवणेदूण एगसमयबंधपाओग्गकम्मइयवग्गणदव्यमवद्विदविरलणाए समखंडं करिय दिण्णे देसोहिउक्कस्सदव्वं होदि। देसोहिदुचरिमभावं तप्पाओग्गसंखेज्जरूवेहि गुणिदे देसोहिउक्कस्सभावो होदि । खेत्तस्सुवरि एगागासपदेसे वड्डिदे लोगो देसोहीए उक्कस्सखेत्तं होदि । कुदो ?
होते, ऐसा पूछने पर उत्तर देते हैं कि वे अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र ही होते हैं; कारण कि ऐसा आचार्यपरम्परागत उपदेश है। अथवा, उक्त क्षेत्रविकल्पोंके विषयमें ज्ञान नहीं है, क्योंकि, तत्सम्बन्धी युक्ति व सूत्रका अभाव है। क्षेत्रविकल्पोंसे द्रव्य और भावके विकल्प असंख्यातगुणे हैं। गुणकार अंगुलका असंख्यातवां भाग है, क्योंकि, अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र द्रव्य औरभावके विकल्पोंके वीत जानेपर क्षेत्रमें एक आकाशप्रदेशकी वृद्धि होती है । इस प्रकार द्विचरम समानवृद्धिकी प्ररूपणा की गई है।
पुनः द्विचरम समानवृद्धिके औदारिक द्रव्यको अवस्थित विरलनासे समखण्ड करके देनेपर उससे आगेका द्रव्यविकल्प होता है। द्विचरम समान वृद्धिके भावको उसके योग्य असंख्यात रूपोंसे गुणित करनेपर तदनन्तर भावविकल्प होता है। इस प्रकार अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र द्रव्य व भावके विकल्पोंके वीत जानेपर क्षेत्रमें एक आक
प्रदेश बढ़ता है। इस प्रकार इस क्रमसे द्रव्य और भावके द्विचरम विकल्प तक ले जाना चाहिये। पुनः अन्तिम देशावधिके उत्कृष्ट द्रव्यको उत्पन्न करते समय द्विचरम औदारिक द्रव्यको छोड़कर एक समय बन्धके योग्य कार्मण वर्गणा द्रव्यको अवस्थित विरलनासे समखण्ड करके देनेपर देशावधिका उत्कृष्ट द्रव्य होता है । देशावधिके द्विचरम भावको तत्प्रायोग्य संख्यात रूपोंसे गुणित करनेपर देशावधिका उत्कृष्ट भाव होता है। क्षेत्रके ऊपर एक आकाशप्रदेश बढ़नेपर देशावधिका उत्कृष्ट क्षेत्र लोक होता है, क्योंकि,
. १ (दाहि विभज्जते दुचरिमदेसावहिम्मि वग्गणयं । चरिमे कम्मइयस्सिगिवग्गणमिगिवारमजिदं तु ॥ गो. नी. ३९८,
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