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४, १,४४.]
कदिअणियोगद्दारे कम्मकारणपरूवणा
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ण कसाया जीवगुणा, जावदव्वभाविणा णाणेण सह विरोहण्णहाणुववत्तदो । पमादासंजमा विण जीवगुणा, कसायकज्जत्तादो | ण अण्णाणं पि, णाणपडिवक्खत्तादो | णमिच्छतं पि, सम्मत्तप्पडिवक्खत्तादो अण्णाणकज्जत्तादो वा । तदो णाण- दंसण संजम सम्मत्त खंति-मद्दवज्जर्व-संतोस-विरागादिसहावो जीवो त्ति सिद्धं ।
ण णिच्चाई कम्माई, तपफलाणं जाइ - जरा - मरण तणु-करणाईणमणिच्चत्तण्णहाणुववत्तदो । ण च णिक्कारणाणि, कारणेण मिणा कज्जाणमुत्पत्तिविरोहादो | ण णाण-दंसणादीणि तक्कारणं, कम्मजणिदकसा एहि सह विरोहण्णहाणुववतीदा । ण च कारणाविरोहीण तक्कज्जेहि विरोहो जुज्जदे, कारणविरोहदुवारेणेव सव्वत्थ कज्जेसु विरोहुवलंभादो । तदो मिच्छत्तासंजम - कसायकारणाणि कम्माणि त्ति सिद्धं । सम्मत्त-संजम कसायाभावा कम्मक्खयकारणाणि, मिच्छत्तादीणं पडिवक्खत्तादो | ण च कारणाणि कज्जं ण जर्णेति चेवेत्ति नियमो अस्थि, तहाणुवलंभादो । तम्हा कहिं पि काले कत्थ वि जीवे कारणकलावसामग्गीए णिच्छएण
ज्ञानकी हानि और वृद्धि पायी जाती है । कषायें जीवके गुण नहीं हैं, क्योंकि, यावद्द्रव्यभावी ज्ञानके साथ उनका विरोध अन्यथा घटित नहीं होगा । प्रमाद व असंयम भी जीवगुण नहीं हैं, क्योंकि, वे कषायों के कार्य हैं । अज्ञान भी जीवका गुण नहीं है, क्योंकि, वह ज्ञानका प्रतिपक्षी है । मिथ्यात्व भी जीवका गुण नहीं है, क्योंकि, वह सम्यक्त्वका प्रतिपक्षी एवं अज्ञानका कार्य है । इस कारण ज्ञान, दर्शन, संयम, सम्यक्त्व, क्षमा, मृदुता, आर्जव, सन्तोष और विराग आदि स्वभाव जीव है, यह सिद्ध हुआ ।
कर्म नित्य नहीं हैं, क्योंकि, अन्यथा जन्म, जरा, मरण, शरीर व इन्द्रियादि रूप कर्मकार्यो की अनित्यता बन नहीं सकती । यदि कहा जाय कि जन्म-जरादिक अकारण हैं, सो भी ठीक नहीं है, क्योंकि, कारणके विना कार्योंकी उत्पत्तिका विरोध है । यदि ज्ञान-दर्शनादिकोंको उनका कारण माने तो वह भी सम्भव नहीं है, क्योंकि, अन्यथा कर्मजनित कषायों के साथ उनका विरोध घटित नहीं होता। और जो कारणके साथ अविरोधी हैं उनका उक्त कारणके कार्योंके साथ विरोध उचित नहीं हैं, क्योंकि, कारणके विरोध के द्वारा ही सर्वत्र कार्योंमें विरोध पाया जाता है । अत एव मिथ्यात्व असंयम और कषाय कर्मोंके कारण हैं, यह सिद्ध हुआ । सम्यक्त्व, संयम और कषायोंका अभाव कर्मक्षयके कारण हैं, क्योंकि, ये मिथ्यात्वादिकोंके प्रतिपक्षी हैं । और कारण कार्यको उत्पन्न करते ही नहीं हैं, ऐसा नियम नहीं है; क्योंकि, वैसा पाया नहीं जाता। अत एव किसी कालमें किसी भी जीव कारणकलाप सामग्री निश्चयसे होना चाहिये । और इसीलिये किसी भी जीवके
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१ अ - आप्रत्योः ' पमदासंजमा ', काप्रती पमत्ता संजमा ' इति पाठः ।
२ प्रतिषु ' बुडुवज्जव ' इति पाठः ।
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