Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१०८ ]
छक्खंडागमे येयणाखंड
[ ४, १, ४४.
अग्ग-विसासणि वज्जाउहादीहि बाहाभावादो घाइकम्माभावलिंगं । ण विज्जावाईहि' वियहिचारो, सोहम्मिंदादिदेवेहि अवहिरिदविज्जासत्तिम्हि तब्बाहाणुवलंभादो सनिबंधणाणिबंधणाणं साहम्माभावादो वा । ण देवेहि वियहिचारों, णिराउहादिविसेसणविसिस्स अग्गि-विसासणिवजा उहा दिवाहाभावादो ति सविसेसणसाहणप्पओगादो । पुव्विल्ललिंगेहि जाणाविद मोहाभावेण वा अवगमिदघादिकम्मामावं । वलियावलोयणाभावादो सगासेसजीवपदेसट्ठियणाण-दंसणावरणाणं णिस्से साभावलिंगं । सव्वावयवेहि पच्चक्खावगमादो' अनिंदियजणिदणाणत्तलिंगं । आगासगमण पहापरिवेढे तिहुवणभवणविसारिणा ससुरहिगंधेण च जाणाविदअमाणुसभावं । अथवा, इमे पादेकदओ, किंतु एदेसिं समूहो एक्को हेउ त्ति घेत्तव्वो । तदो एदं सरीरं रागदोस- मोहाभावं जाणावेदि, तदभावो वि महावीरे मुसावादाभावं जाणावेदि, कारणाभावे
है । अग्नि, विष, अशनि और वज्रायुधादिकोंसे वाधा न होनेके कारण घातिया कर्मों के अभावका अनुमापक है। यहां विद्यावादियोंसे व्यभिचार नहीं आता, क्योंकि, सौधर्मेन्द्र आदि देवों द्वारा जिसकी विद्याशक्ति छीन ली गई है उसमें चूंकि पूर्वोक बाधाएं पायी जाती हैं तथा सकारण और अकारण बाधाभावों में साधर्म्य भी नहीं है ।
विशेषार्थ - विद्यावादियोंमें बाधाभाव सकारण है, क्योंकि, वहां उक्त बाधाभाव विद्याजनित है, न कि जिन भगवान् के समान घातिया कर्मों के अभाव से उत्पन्न बाधाभाव जैसा स्वाभाविक । यही दोनोंके बाधाभाव में वैधर्म्य है ।
न देवोंसे व्यभिचार है, क्योंकि, निरायुधादि विशेषणोंसे विशिष्ट उक्त शरीरके आरी, विष, अशनि, और वज्रायुधादिकोंसे कोई बाधा नहीं होती, ऐसे सविशेषण साधनका प्रयोग है । अथवा, पूर्वोक्त हेतुओंसे सूचित मोहाभावके द्वारा वह घातिया कर्मो के अभावको प्रगट करनेवाला है । वलित अर्थात् कुटिल अवलोकनका अभाव होने से अपने समस्त जीवप्रदेशोंपर स्थित ज्ञानावरण और दर्शनावरणके पूर्ण अभावका सूचक है । समस्त अवयवों द्वारा प्रत्यक्ष ज्ञान होनेसे अतीन्द्रिय ज्ञानत्वका सूचक है। तथा आकाशगमनसे, प्रभामण्डलसे एवं त्रिभुवनरूप महलमें फैलनेवाली अपनी सुरभित गन्धसे अमानुषताका ज्ञापक है । अथवा, ये प्रत्येक अलग अलग हेतु नहीं है, किन्तु इनके समूह रूप एक हेतु है, ऐसा ग्रहण करना चाहिये । इस कारण यह शरीर राग, द्वेष एवं मोहके अभावका ज्ञापक है । और रागादिका अभाव भी भगवान् महावीरमें असत्य भाषणके
१ प्रतिषु ' ईज्जावाईहि ' इति पाठः ।
२ प्रतिषु ' णिस्से साभावविद्धं ', मप्रतौ ' णिस्सेसाभावविंद ' इति पाठः ।
३ प्रतिषु पच्चक्खावरमादो' इति पाठ: ।
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