Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, ३.] कदिअणियोगद्दारे परमोहिणाणपरूवणा
[११ वुत्तं होदि । महव्वयविरहिददोरयणहराणं ओहिणाणीणमणोहिणाणीणं च किमढें णमोक्कारो ण कीरदे ? गारवगरुवेसु जीवेसु चरणाचारपयट्टावणढे उत्तिमग्गविसयभत्तिपयासणटुं च ण कीरदे । एवं देसोहिजिणाणं णमोक्कारं काऊण परमोहिजिणाणं णमोक्कारकरणमुत्तरसुत्तं भणदि( णमो परमोहिजिणाणं ॥३॥
परमो ज्येष्ठः, परमश्वासौ अवधिश्च परमावधिः । कधमेदस्स ओहिणाणस्स जेट्टदा ? देसोहिं पेक्खिदूण महाविसयत्तादो, मणपज्जवणाणं व संजदेसु चेव समुप्पत्तीदो, सगुप्पण्णभवे चेव केवलणाणुप्पत्तिकारणत्तादो, अप्पडिवादित्तादो वा जेट्टदा । परमावधयश्च ते जिनाश्च परमावधिजिनाः, तेभ्यो नमः । जदि देसोहिणाणादो परमोहिणाणं जेट्ट होदि तो एदस्सेव पुव्वं
शंका-महावतोंसे रहित दो रत्नों अर्थात् सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानके धारक अवधिज्ञानी तथा अवधिज्ञानसे रहित जीवोंको भी क्यों नहीं नमस्कार किया जाता?
समाधान - अहंकारसे महान् जीवोंमें चरणाचार अर्थात् सम्यक् चारित्र रूपप्रवृत्ति करानेके लिये तथा प्रवृत्तिमार्गविषयक भक्तिके प्रकाशनार्थ उन्हें नमस्कार नहीं किया जाता है।
इस प्रकार देशावधिजिनोंको नमस्कार करके परमावधिजिनोंको नमस्कार करनेके लिये उत्तर सूत्र कहते हैं
परमावधिजिनोंको नमस्कार हो ॥३॥ परम शब्दका अर्थ ज्येष्ठ है । परम ऐसा जो अवधि वह परमावधि है। शंका-इस अवधिज्ञानके ज्येष्ठपना कैसे है ?
समाधान-चूंकि यह परमावधि ज्ञान देशावधिकी अपेक्षा महा विषयवाला है, मनःपर्ययज्ञानके समान संयत मनुष्यों में ही उत्पन्न होता है, अपने उत्पन्न होनेके भवमें ही केवलज्ञानकी उत्पत्तिका कारण है, और अप्रतिपाती है अर्थात् सम्यक्त्व व चारित्रसे च्युत होकर मिथ्यात्व एवं असंयमको प्राप्त होनेवाला नहीं है। इसीलिये उसके ज्येष्ठपना सम्भव है।
परमावधि रूप ऐसे वे जिन परमावाध जिन हैं। उनके लिये नमस्कार है। शंका-यदि देशावधि ज्ञानसे परमावधि ज्ञान ज्येष्ठ है तो इसको ही पहिले
क.क.६.
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