Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, ३.
कदिअणियोगद्दारे परमोहिणाणपरूवणा
[ ४१
समयकालो दु ' समयश्चासौ कालश्च समयकालः । समयविसेसणं किमहं ? दव्वकालपडिसेह । किमहं दव्वकालपडिसेहो कीरदे ? तेणेत्थ पओजणाभावादो । दुसद्द। अविसद्दत्थे' दट्ठव्वो । अवधेः समयकालोऽपि असंख्येयलोकमात्रः । एद्रेण परमोहीए उक्कस्सकाल-भात्राणं परूवणा कदा | होदु कालपरूवणा एसा, ण भावपरूवणा; काल - भावाणमेयत्तविरोहादो । ण एस दोसो, अदीदाणागयपज्जया तीदाणागयकालो, वट्टमाणपज्जया वट्टमाणकालो । तेर्सि चेव भावसण्णा वि, 'वर्तमानपर्याीयोपलक्षितं द्रव्यं भावः' इदि पओअदंसणादो | तीदाणागयकाहिंतो वट्टमाणकालो भावसण्णिदो कालत्तणेण अभिण्णो त्ति काल - भावाणमयत्ताविरोहादो । एदेण वक्खाणेण जहण्णपरमोहिकालो ण सूचिदो, सो कधं लब्भदे ? ' परमोहीए असंखेज्जा
"
काल है ।
शंका- यहां समय विशेषण किसलिये दिया है ?
समाधान - द्रव्य कालका प्रतिषेध करनेके लिये समय विशेषण दिया है ।
शंका - द्रव्य कालका प्रतिषेध किसलिये किया जाता है ?
समाधान - क्योंकि, उसका यहां प्रयोजन नहीं है ।
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तु' शब्द अपि ( भी ) शब्द के अर्थ में जानना चाहिये । अवधिका समय रूप काल भी असंख्यात लोक मात्र है । इससे परमावधिके उत्कृष्ट काल और भावकी
प्ररूपणा की है ।
शंका- -यह कालप्ररूपणा भले ही हो, किन्तु भावप्ररूपणा नहीं हो सकती क्योंकि, काल और भावकी एकताका विरोध है ?
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समाधान —यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, अतीत और अनागत पर्यायें अतीत अनागत काल हैं, तथा वर्तमान पर्यायें वर्तमान काल हैं। उन्हीं पर्यायोंकी ही भाव संज्ञा भी है, क्योंकि, 'वर्तमान पर्यायसे उपलक्षित द्रव्य भाव है ' ऐसा प्रयोग देखा जाता है । अतीत और अनागत कालसे चूंकि भाव संज्ञावाला वर्तमान काल कालस्वरूपसे अभिन्न है, अतः काल और भावकी एकतामें कोई विरोध नहीं है ।
शंका - इस व्याख्यानसे जघन्य परमावधिका काल नहीं सूचित किया गया है, वह कैसे जाना जाता है ?
समाधान - 'परमावधिका असंख्यात समय काल है, ' इस सूत्र से वह जाना
१ प्रतिषु ' अविसदत्थे ' इति पाठः ।
२ स. सि. १, ५. त. रा. १, ५, ८.
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