Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, ३. ]
कदिअणियोगद्दारे परमोहिणाणपरूवणा
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पमाण होदि । एसो परमोहीए दव्व-खेत-काल- भावाणं सलागरासि त्ति पुध वेदव्वो । पुणो दो आवलियाए असंखेज्जदिभागा समसंखा, ते वि पुध वेदव्वा । तत्थ दाहिणपासयिस्स पडिगुणगारे। अवट्ठिदगुणगारो त्ति दोणि णामाणि । तत्थ जो सो वामपासट्ठिदो तस्स खेतकालगुणगारो अणवदिगुणगारो त्ति दोणिण णामाणि । एवं ठविय तद। देसोहि उक्कस्सदव्वमवदिविरलणाए समखंड करिय दिण्णे तत्थ एगरूवधरिदं परमोहिजहण्णदव्वं होदि' । देसोहिउक्करसभावे तप्पाओग्गअसंखेज्जरूवेहि गुणिदे परमोहीए जहण्णभावो होदि । देसोहीए उक्कस्सखेत्तं लोगमणवदिगुणगारेण गुणिदे परमोहीए जहण्णं खेत होदि । पुणो समऊणपल्लमुक्कस्सदेसोहिकालं तेणेव अणवट्ठिदगुणगारेण गुणिदे परमो हिजहण्णकालो होदि । सलागाहिंतो एगरूवमवणेदव्वं । पुणो परमो हिजहण्णदव्वमवदिविरलणाए समखंड करिय दिण्णे तत्थ एगखंडं परमोहीए विदियदव्ववियप्पो होदि । परमोहीए जहण्णभावं तप्पाओग्गअसंखेज्जरूवेहि गुणिदे तस्सेव विदियवियप्पो होदि । पुणो परमोहिजहण्णखेत्तं पडिगुणगारेण गुणिदट्ठमवियष्पगुणगारेण गुणिदे परमोहिखेत्तस्स बिदियवियप्पो होदि । एदेणेव गुणगारेण
द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावकी शलाका राशि है; अतः उसे पृथक् स्थापित करना चाहिये । पुनः समान संख्यावाले आवली के दो असंख्यात भागों को लेकर उन्हें भी पृथक् स्थापित करना चाहिये। उनमें से दाहिने पार्श्व में स्थित राशिको प्रतिगुणकार व अवस्थित गुणकार इस प्रकार दो संज्ञायें हैं । उनमें जो वह वाम पार्श्व में स्थित है उसके क्षेत्र कालगुणकार और अनवस्थित गुणकार ये दो नाम हैं । इस प्रकार स्थापित करके पश्चात् देशावधिके उत्कृष्ट द्रव्यको अवस्थित विरलनासे समखण्ड करके देनेपर उनमें एक रूपधरित परमावधिका जघन्य द्रव्य होता है । देशावधिके उत्कृष्ट भावको उसके योग्य असंख्यात रूपोंसे गुणित करनेपर परमावधिका जघन्य भाव होता है । देशावधिके उत्कृष्ट क्षेत्र लोकको अनवस्थित गुणकार से गुणित करनेपर परमावधिका जघन्य क्षेत्र होता है । पुनः एक समय कम पल्य रूप देशावधिके उत्कृष्ट कालको उसी अनवस्थित गुणकारसे गुणित करनेपर परमावधिका जघन्य काल होता है । शलाकाओं में से एक रूप कम करना चाहिये । पुनः परमावधिके जघन्य द्रव्यको अवस्थित विरलनासे समखण्ड करके देनेपर उनमें एक खण्ड परमावधिका द्वितीय द्रव्यविकल्प होता है । परमावधिके जघन्य भावको उसके योग्य असंख्यात रूप से गुणित करनेपर उसका ही द्वितीय विकल्प होता है । पुनः परमावधिके जघन्य क्षेत्रको प्रतिगुणकार से गुणित अधस्तन विकल्पके गुणकारसे गुणित करनेपर परमावधिके क्षेत्रका द्वितीय विकल्प होता है । इसी गुणकार से परमावधिके जघन्य कालको गुणित करनेपर
१ देसा वहिवरद धुवहारेणवहिदे हवे णियमा । परमावहिस्स अवरं दव्यमाणं तु जिनदि ॥ परमावदिस्त मेदा सगग्गाहण वियप्पहदतेऊ । चरिमे हारपमाणं जेट्ठरस य होदि दव्वं तु ॥ गो. जी. ४९३-४१४०
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