Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, १६.] कदिअणियोगद्दारे विज्जाहरपरूवणी
( 0 वइचित्तियत्तादो । एदेहि अहहि विउब्वणसत्तीहि सहियाणं णमोक्कारो कीरदे । अद्वगुणरिद्धिजुत्ताणं देवाणं एसो पामोक्कारो किण्ण पावदे ? ण एस दोसो, जिणसद्दाणुवट्टणेण तण्णिराकरणादो। ण च देवाणं जिणत्तमत्थि, तत्थ संजमाभावादो । एत्तो उवरि जहातहाणुपुस्विक्कमो दट्ठन्वो, महल्लपरिवाडीए अगुवलंभादो । (णमो विज्जाहराणं ॥ १६ ॥ तिविहाओ विज्जाओ जादि-दुल-तवविज्जाभेएण । उत्तं च
जादीसु होइ विज्जा कुलविज्जा तह य होइ तवविज्जा ।
विज्जाहरेसु एदा तवविज्जा होइ साहूणं ॥ २० ॥ तत्थ सगमादुपक्खादो लद्धविज्जाओ जादिविज्जाओ णाम । पिदुपक्खुवलद्धाओ कुलविज्जाओ। छट्ठट्ठमादिउववासविहाणेहि साहिदाओ तवविज्जाओ । एवमेदाओ तिविहाओ
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७० + ५६ + २८ + ८ + १ - २५५ भंग होते हैं। ] इन आठ विक्रिया शक्तियोंसे सहित जिनोंको नमस्कार किया जाता है।
शंका-आठ गुण ऋद्धियोंसे युक्त देवोंको यह नमस्कार क्यों नहीं प्राप्त होगा?
समाधान-यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, जिन शब्दकी अनुवृत्ति आनेसे उसका निराकारण हो जाता है । कारण कि देव जिन नहीं हैं, क्योंकि, उनमें संयमका अभाव है।
यहांसे आगे यथा-तथा-आनुपूर्वीक्रम समझना चाहिये, क्योंकि, महानताकी परिपाटी नहीं पाई जाती।
विद्याधरोंको नमस्कार हो ॥१६॥
जातिविद्या, कुलविद्या और तपविद्याके भेदसे विद्यायें तीन प्रकार हैं। कहा भी है
जातियों में विद्या अर्थात् जातिविद्या है, कुलविद्या तथा तपविद्या भी विद्या हैं । ये विद्यायें विद्याधरों में होती हैं। किन्तु तपविद्या साधुओंके होती है ॥ २०॥ ..
इन विद्याओंमें स्वकीय मातृपक्षसे प्राप्त हुई विद्यायें जातिविद्यायें और पितृपक्षसे प्राप्त हुई कुलविद्यायें कहलाती हैं । षष्ठ और अष्टम आदि उपवासोंके करनेसे सिद्ध की
. १ कुल-जाईविज्जाओ साहियविज्जा अणेयभेयाओ । विज्जाहरपुरिस-पुरंधियाण वरसोक्खजणणीओ ॥ ति.प.४-१३८.
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