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४, १, ३..] कदिअणियोगदारे आमोसहिरिद्धिपरूवणा . . [ ९५ णवरि असुहलद्धीणं पउत्ती लद्धिमंताणमिच्छावसवट्टणी । सुहाणं लद्धीणं पउत्ती पुण दोहि वि पयारेहि संभवदि, तदिच्छाए विणा वि पउत्तिदसणाद।।
णमो आमोसहिपत्ताणं ॥ ३०॥
आमर्षः औषधत्वं प्राप्तो येषां ते आमोषधप्राप्ताः । सुत्ते सकारो किण्ण सुणिज्जदि ? 'आई-मज्झंतवण्ण-सरलोवो" त्ति लक्खणादो। ओसहि त्ति इकारो कत्तो ? 'एए छच्चे समाणा" ति
विशेष इतना है कि अशुभ लब्धियोंकी प्रवृत्ति लब्धियुक्त जीवोंकी इच्छाके वशसे होती है। किन्तु शुभ लब्धियोंकी प्रवृत्ति दोनों ही प्रकारोंसे सम्भव है, क्योंकि, उनकी इच्छाके विना भी उक्त लब्धियोंकी प्रवृत्ति देखी जाती है।
आमाँषधिप्राप्त ऋषियोंको नमस्कार हो ॥ ३० ॥ जिनका आमर्ष अर्थात् स्पर्श औषधपनेको प्राप्त है वे आमदैषध प्राप्त हैं। शंका-सूत्र में सकार क्यों नहीं सुना जाता है ?
समाधान-[प्राकृतमें ] किन्हीं पदोंके आदि, मध्य व अन्तके वर्ण और स्वरका लोप कर दिया जाता है' इस व्याकरणके नियमसे सकारका लोप हो गया, अतः वह नहीं सुना जाता।
शंका-'औषधि' में इकार कहांसे आया?
समाधान-'अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ये छह समान स्वर [तथा ए और ओ ये दो सन्ध्यक्षर, ये आठो स्वर विना विरोधके एक दूसरेके स्थानमें आदेशको प्राप्त होते हैं ] । इस व्याकरणके नियमसे 'औषधि' यहां इकार किया गया है।
विशेषार्थ-यद्यपि संस्कृतमें 'औषधि' और 'औषध' दोनों शब्द हैं, तथापि यहां केवल औषधिसमूह रूप 'औषध' शब्दसे अभिप्राय होनेके कारण उक्त प्रकार समाधान किया गया है।
१ कीरइ पयाण काण वि आई-मझंतवण्णसरलोवो-(जयध. भाग १, पृ. ३२६ ).
२ एए छच्च समाणा दोण्णि अ संज्झक्खरा सरा अढ । अण्णोण्णस्सविरोहा उति सव्वे समाएसं ॥ (नयथ. १, पृ. ३२६).
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