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४, १, २८. ]
कदिअणियोगदारे घोरगुण रिद्धिपरूवणा
( णमो घोरपरक्कमाणं ॥ २७ ॥
तिहुवणुव संहरण - महीवी ढंगसण-सयलसायर जलसोसण - जलग्गिसिलापव्वदादिवरिसणसत्ती घोरपरक्कम णाम । घोरो परक्कमो जेसिं जिणाणं ते घोरपरक्कमा । तेसिं णमो इदि भणिदं होदि । ण कूरकम्माणं असुराणं णमोक्कारो पसज्जदे, जिणाणुवत्तीदो ।
णमो घोरगुणाणं ॥ २८ ॥
घोरा उद्दा गुणा जेसिं ते घोरगुणा । कथं चउरासीदिलक्खगुणाणं घोरतं ? घोरकज्जकारिसत्तिजणणादो । तेसिं घोरगुणाणं णमो इदि उत्तं होदि । णादिष्पसंगो, जिणाणुवृत्तीद | ण गुण परक्कमाणमेयत्तं, गुणजणिदसत्तीए परक्कमववएसादो |
घोरपराक्रम ऋद्धि धारक जिनोंको नमस्कार हो ॥ २७ ॥
तीनों लोकोंका उपसंहार करने, पृथिवीतलको निगलने, समस्त समुद्र के जलको सुखाने; तथा जल, अग्नि एवं शिलापर्वतादि के वरसाने की शक्तिका नाम घोरपराक्रम है । घोर है पराक्रम जिन जिनोंका वे घोरपराक्रम कहलाते हैं । उनको नमस्कार हो, यह अभिप्राय है । यहां जिन शब्दकी अनुवृत्ति आनेसे क्रूर कर्म करनेवाले असुरोंको नमस्कार करनेका प्रसंग नहीं आता ।
गुण जिनको नमस्कार हो ॥ २८ ॥
घोर अर्थात् रौद्र हैं गुण जिनके वे घोरगुण कहे जाते हैं। शंका- चौरासी लाख गुणोंके घोरत्व कैसे सम्भव है ?
समाधान - घोर कार्यकारी शक्तिको उत्पन्न करनेके कारण उनके घोरत्व सम्भव है।
उन घोरगुण जिनोंको नमस्कार हो, यह सूत्रका अर्थ है । जिन शब्दकी अनुवृत्ति 1. होने से यहां अतिप्रसंग भी नहीं आता । गुण और पराक्रमके एकत्व नहीं है, क्योंकि, गुणसे उत्पन्न हुई शक्तिकी पराक्रम संज्ञा है ।
१ आप्रतौ ' -पडिक्कमणि', काप्रतौ ' परिक्कमाणं ' इति पाठः । २ प्रतिषु महीविद' इति पाठः । ३ णिरुवमवततवा तिहुवण संहरणकरणसत्तिजुदा । कंटय- सिलग्गि-पव्त्रयधूमुक्का पहुदिव रिसणसमत्था ॥ सहस चि सयलसायरसलिलुप्पीलस्स सोसणसमत्था । जायंति जीए मुणिणो घोरपरक्कमतव ति सा रिद्धी ॥ पि. प. ४, १०५६-१०५७. त एव गृहीततपोयोगवर्धनपरा घोरपराक्रमाः । त. रा. ३, ३६, २.
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