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छक्खंडागमे वेयणाखंड
[१, १, १७. मुढविकाइयजीवाणं बाहमकाऊण अणेगजोयणसयमामिणो जंघचारणा' णाम । धूमग्गि-गिरितरु-तंतुसंताणेसु उड्डारोहणसत्तिसंजुत्ता सेडीचारणा णाम । चउहि अंगुलेहितो अहियपमाणेण भूमीदो उवरि आयासे गच्छंतो आगासचारणा णाम् । आगासचारणाणमुवरि उच्चमाणआगासगामीणं च को विसेसो ? उच्चदे- जीवपीडाए विणा पादुक्खेवेण आगासगामिणो आगासचारणा णाम । पलियंक-काउसग्ग-सयणासण-पादुक्खेवादिसव्वपवारहि आगासे संचरणसमत्था आगासगमिणो । चारणाणमेत्थ एगसंजोगादिकमेग विसदपंचपंचास भंगा उप्पाएदवा। कधमेगं चारित्तं विचित्तसत्तिसमुप्पाययं ? ण, परिणामभेएण णाणभेदभिण्णचारित्तादो चारणबहुत्तं पडि विरोहाभावादो। कधं पुण चारणा अट्टविहा त्ति जुज्जदे ? ण एस दोसो, णियमाभावादो,
समान कहना चाहिये। भूमिमें पृथिवीकायिक जीवोंको बाधा न करके अनेक सौ योजन गमन करनेवाले जंघाचारण कहलाते हैं। धूम, अग्नि, पर्वत और वृक्षके तन्तुसमूहपरसे ऊपर चढ़नेकी शक्तिसे संयुक्त श्रेणीचारण हैं। चार अंगुलोंसे अधिक प्रमाणमें भूमिसे ऊपर आकाशमें गमन करनेवाले ऋषि आकाशचरण कहे जाते हैं।
शंका-आकाशचारण और आगे कहे जानेवाले आकाशगामीके क्या भेद है ?
समाधान - इस शंकाकारका उत्तर कहते हैं । जीवपीड़ाके विना पैर उठाकर आकाशमें गमन करनेवाले आकाशचारण हैं। पल्यंकासन, कायोत्सर्गासन, शयनासन और पैर उठाकर इत्यादि सब प्रकारोंसे आकाशमें गमन करने में समर्थ ऋषि आकाशगामी कहे जाते हैं।
यहां चारण ऋषियोंके एकसंयोग द्विसंयोगांदिके क्रमसे दो सौ पचवन भंग उत्पन्न करना चाहिये । (देखो सूत्र १५ की टीका )।
शंका-एक ही चारित्र इन विचित्र शक्तियोंका उत्पादक कैसे हो सकता है ?
समाधान - नहीं, क्योंकि, परिणामके भेदसे नाना प्रकार चारित्र होनेके कारण चारणोंकी अधिकतामें कोई विरोध नहीं है।
शंका-जब चारणोंके भेद दो सौ पचवन हैं तो फिर उन्हें आठ प्रकार बतलाना कैसे युक्त है ?
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, उनके आठ प्रकार होनेका नियम
१ चउरंगुलमेत्तमहिं छंडिय गयणम्मि कुडिलजाणु विणा । जं बहुजोयणगमणं सा जंघाचारणा रिद्धी ॥ ति.प.४-१०३७.
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