Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, ७. ]
कदिअणियोगद्दारे बीजबुद्धिरिद्धिपरूवणा
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ण, गोमदथेराणमेत्थ एवंविहभावाभावादो । तदभावो कुदो वगम्मदे ? मदिणाणीणं पुव्वं किदिकम्माकरणादो । परोक्खं मदिणाणं, ओहि केवलाणि पच्चक्खाणि; इंदियजं मदिणाणं, ओहि केवलणाणाणि अनिंदियाणि त्ति मदिणाणादो ओहि केवलणाणमाहप्पं पेक्खिय तेसिमग्गपूजा कदा | गोदमथेरस्स एसो अहिप्पाओ त्ति कथं णव्वदे ? अहिप्पायाविणाभाविवयणकज्जादो | बीजबुद्धिआदीणमग्गगूजा किण्ण कदा ? ण, तत्तो धारणाए गुणगरिमुवलंभादो । कुदो ? धारणाए विणा बीजबुद्धिआदीणं विहलत्तुवलंभादो ।
णमो बीजबुद्धीणं ॥ ७ ॥
जिणाणमिदि अणुवट्टदे' । तदो णमो बीजबुद्धीणं जिणाणमिदि एद्दहं सुत्तमिदि
समाधान नहीं करते, क्योंकि, गौतम स्थविरका यहां ऐसा अभिप्राय नहीं है । शंका- -उनका ऐसा अभिप्राय नहीं रहा, यह कहांसे जाना जाता है ?
समाधान - मतिज्ञानियोंको पहिले नमस्कार न करने से उनके उक्त अभिप्रायका अभाव जाना जाता है । मतिज्ञान परोक्ष है, किन्तु अवधि और केवल ज्ञान प्रत्यक्ष है; मतिज्ञान इन्द्रियजन्य है और अवधि व केवल ज्ञान अतीन्द्रिय हैं; इस प्रकार मतिज्ञानसे अवधि और केवल ज्ञानके माहात्म्यकी अपेक्षा करके उनकी पहिले पूजा की है ।
शंका- गौतम स्थविरका ऐसा अभिप्राय रहा है, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान - उक्त अभिप्रायके विना न होनेवाले वचन रूप कार्यसे वह जाना जाता है ।
शंका - बीजबुद्धि आदिके धारकोंकी पहिले पूजा क्यों नहीं की ?
समाधान - - नहीं की, क्योंकि, बीजबुद्धि आदिकी अपेक्षा धारणाके गुणगौरव अधिक पाया जाता है । कारण कि धारणाके विणा बीजबुद्धि आदिकोंकी विफलता देखी जाती है।
बीजबुद्धि धारक जिनको नमस्कार हो ॥ ७ ॥
यहां 'जिनोंको ' पदकी अनुवृत्ति है । इस कारण बीजवुद्धि धारक जिनोंको नमस्कार हो, इस प्रकार इतना सूत्र है; ऐसा ग्रहण करना चाहिये । बीजके समान बीज
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१ अआप्रत्योः ' अणुववट्टदे ' इति पाठः ।
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