SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४, १, ७. ] कदिअणियोगद्दारे बीजबुद्धिरिद्धिपरूवणा [ ५५ ण, गोमदथेराणमेत्थ एवंविहभावाभावादो । तदभावो कुदो वगम्मदे ? मदिणाणीणं पुव्वं किदिकम्माकरणादो । परोक्खं मदिणाणं, ओहि केवलाणि पच्चक्खाणि; इंदियजं मदिणाणं, ओहि केवलणाणाणि अनिंदियाणि त्ति मदिणाणादो ओहि केवलणाणमाहप्पं पेक्खिय तेसिमग्गपूजा कदा | गोदमथेरस्स एसो अहिप्पाओ त्ति कथं णव्वदे ? अहिप्पायाविणाभाविवयणकज्जादो | बीजबुद्धिआदीणमग्गगूजा किण्ण कदा ? ण, तत्तो धारणाए गुणगरिमुवलंभादो । कुदो ? धारणाए विणा बीजबुद्धिआदीणं विहलत्तुवलंभादो । णमो बीजबुद्धीणं ॥ ७ ॥ जिणाणमिदि अणुवट्टदे' । तदो णमो बीजबुद्धीणं जिणाणमिदि एद्दहं सुत्तमिदि समाधान नहीं करते, क्योंकि, गौतम स्थविरका यहां ऐसा अभिप्राय नहीं है । शंका- -उनका ऐसा अभिप्राय नहीं रहा, यह कहांसे जाना जाता है ? समाधान - मतिज्ञानियोंको पहिले नमस्कार न करने से उनके उक्त अभिप्रायका अभाव जाना जाता है । मतिज्ञान परोक्ष है, किन्तु अवधि और केवल ज्ञान प्रत्यक्ष है; मतिज्ञान इन्द्रियजन्य है और अवधि व केवल ज्ञान अतीन्द्रिय हैं; इस प्रकार मतिज्ञानसे अवधि और केवल ज्ञानके माहात्म्यकी अपेक्षा करके उनकी पहिले पूजा की है । शंका- गौतम स्थविरका ऐसा अभिप्राय रहा है, यह कैसे जाना जाता है ? समाधान - उक्त अभिप्रायके विना न होनेवाले वचन रूप कार्यसे वह जाना जाता है । शंका - बीजबुद्धि आदिके धारकोंकी पहिले पूजा क्यों नहीं की ? समाधान - - नहीं की, क्योंकि, बीजबुद्धि आदिकी अपेक्षा धारणाके गुणगौरव अधिक पाया जाता है । कारण कि धारणाके विणा बीजबुद्धि आदिकोंकी विफलता देखी जाती है। बीजबुद्धि धारक जिनको नमस्कार हो ॥ ७ ॥ यहां 'जिनोंको ' पदकी अनुवृत्ति है । इस कारण बीजवुद्धि धारक जिनोंको नमस्कार हो, इस प्रकार इतना सूत्र है; ऐसा ग्रहण करना चाहिये । बीजके समान बीज Jain Education International १ अआप्रत्योः ' अणुववट्टदे ' इति पाठः । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001403
Book TitleShatkhandagama Pustak 09
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1949
Total Pages498
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy