Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४, १, ७.] कदिअणियोगद्दारे बीजबुद्धिरिद्धिपरूवणा (५७ संखेज्जं चेव जाणदि त्ति तत्थ णियमाभावादो । णासेसपयत्था सुदणाणेण परिच्छिज्जंति,
(पण्णवणिज्जा भावा अणंतभागो दु अणमिलप्पाणं ।
पण्णवणिज्जाणं पुण अणंतभागो सुदणिबद्धो ॥ १७ ॥) इदि क्यणादो त्ति उत्ते होदु णाम सयलपयत्थाणमणंतिमभागो दव्वसुदणाणविसओ, मावसुदणाणविसओ पुण सयलपयत्था; अण्णहा तित्थयराणं वागदिसयत्ताभावप्पसंगादो । [ वदो ] बीजपदपरिच्छेदकारिणी बीजबुद्धि त्ति सिद्धं । बीजपदट्टिदपदेसादो हेहिमसुदणाणुप्पत्तीए कारणं होदूण पच्छा उवरिमसुदणाणुप्पत्तिणिमित्ता बीजबुद्धि त्ति के वि. आइरिया भणति । तण्ण घडदे, कोहबुद्धियादिचदुण्हं णाणाणमक्कमेणेक्कम्हि जीवे सव्वदा अणुप्पत्तिप्पसंगादो । तं कधं ? बीजबुद्धिसहिदजीवे ण ताव अणुसारी पडिसारी वा संभवदि, उहय
ऐसा यहां नियम नहीं है।
शंका-श्रुतज्ञान समस्त पदार्थोंको नहीं जानता है, क्योंकि,
वचनके अगोचर ऐसे जीवादिक पदार्थोके अनन्तवें भाग प्रशापनीय अर्थात् तीर्थकरकी सातिशय दिव्य ध्वनिमें प्रतिपाद्य होते हैं। तथा प्रज्ञापनीय पदार्थोके अनन्तवें भाग द्वादशांग श्रुतके विषय होते हैं ॥ १७ ॥
इस प्रकारका वचन है।
समाधान-इस शंकाके उत्तरमें कहते हैं कि समस्त पदार्थोंका अनन्तवां भाग द्रव्य श्रुतज्ञानका विषय भले ही हो, किन्तु भाव श्रुतज्ञानका विषय समस्त पदार्थ हैं; क्योंकि, ऐसा माननेके विना तीर्थकरोंके वचनातिशयके अभावका प्रसंग होगा। [इसलिये]. बीजपदोंको ग्रहण करनेवाली बीजबुद्धि है, यह सिद्ध हुआ।
बीजपदसे अधिष्ठित प्रदेशसे अधस्तन श्रुतके ज्ञानकी उत्पत्तिका कारण होकर पीछे. उपरिम श्रुतके ज्ञानकी उत्पत्तिमें निमित्त होनेवाली बीजबुद्धि है, ऐसा कितने ही आचार्य कहते हैं। किन्तु वह घटित नहीं होता, क्योंकि,ऐसा माननेपर कोष्ठबुद्धि आदि चार शानोंकी युगपत् एक जीवमें सर्वदा उत्पत्ति न हो सकनेका प्रसंग आवेगा।
शंका-वह कैसे? समाधान-बीजबुद्धि सहित जीवमें अनुसारी अथवा प्रतिसारी बुद्धि सम्भव
१गो. जी. ३३४. विशे. भा. १४१.
२ प्रतिषु 'वागतिसयत्थाभाव.' इति पाठः।
छ. क. ८.
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