Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, १, ५.)
कदिअणियोगद्दारे केवलणाणपरूवणा वि जाणंति ति तेसिं सत्तिप्पदंसणादो। परमोहि-सव्वोहीणं जिणत्ताविणाभाविणीणं किमहूं जिणविसेसणं कीरदे? सच्चमेदं, किंतु एत्थ सव्व-परमोहीओ विसेसण जिणा विसेसियं, अणेयपयाराणमाहारत्तादो । तेण ण दोसो त्ति सिद्धं । सर्वावधयश्च ते जिनाश्च सर्वावधिजिनाः, तेभ्यो नमः । (णमो अणंतोहिजिणाणं ॥५॥)
अणते त्ति उत्ते उक्कस्सअणंतस्स गहणं, दव्वट्ठियणयावलंबणादो । सो उक्कस्साणंतो ओही जस्स सो' अणंतोही । ओही णाम वत्थुणिबंधणा । ण च एत्थ उक्कस्साणंतादो बज्झं किं पि अत्थि, तम्हा उक्कस्साणतस्स ओहित्तं ण जुज्जदि त्ति ? ण, ओही व ओहि ति उव-. यारेण उक्कस्साणतस्स ओहित्तविरोहाभावादो। ओही किमुक्कस्साणंतादो पुधभूदा आहो
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लोकोंको पूर्ण करके स्थित हो तो भी वे जान लेंगे। इस प्रकार उनकी शक्तिका प्रदर्शन किया गया है।
शंका-जिनत्वके साथ अविनाभाव रखनेवाले परमावधि और सर्वावधिके जिन विशेषण किसलिये किया जाता है ? ।
समाधान- यह सत्य है, किन्तु यहां सर्वावधि और परमावधि विशेषण है और जिन विशेष्य है, क्योंकि, वे अवधिज्ञानके अनेक प्रकारोंके आधार हैं; अतएव उक्त विशेषण-विशेष्य भावमें कोई दोष नहीं है, यह सिद्ध है।
सर्वावधि रूप जो जिन हैं वे सर्वावधि जिन हैं, उनके लिये नमस्कार हो । अनन्तावधि जिनोंको नमस्कार हो ॥५॥
'अनन्त' इस प्रकार कहनेपर उत्कृष्ट अनन्तका ग्रहण है, क्योंकि, यहां द्रव्यार्थिक नयका अवलम्बन है । वह उत्कृष्ट अनन्त है अवधि जिसकी वह अनन्तावधि है।
शंका-अवधि वस्तु निमित्तक होती है। और यहां उत्कृष्ट अनन्तसे बाह्य कोई भी वस्तु है नहीं, अतः उत्कृष्ट अनन्तको अवधिपना उचित नहीं है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, 'अवधिके समान जो है यह अवधि है' इस प्रकार उपचारसे उत्कृष्ट अनन्तको अवधि माननेमें कोई विरोध नहीं हैं।
शंका-अवधि क्या उत्कृष्ट अनन्तसे पृथग्भूत है, अथवा उत्कृष्ट अनन्त ही अवधि
१ प्रतिषु 'ओहि विस्स सो' इति पाठः । २अप्रतौ णामादो', आ-काप्रत्योः । णामदो' इति पाठः।
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