Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३६) छक्खंडागमे वैयणाखंड
[४, १, २. वग्गणाए 'जाव लोगो ताव पडिवादी, उवरि अप्पडिवादि"त्ति वयणादो' । दुचरिमकालस्सुवरि एगसमए पक्खित्ते देसोहीए उक्कस्सकालो समऊणपल्लं होदि ।
जो एसो अण्णाइरियाणं वक्खाणकमो परूविदो सो जुत्तीए ण घडदे । कुदो ? सव्वट्ठसिद्धिदेवाणमुक्कस्सोहिदव्वादो उक्कस्सदेसोहिदव्वस्स अणतगुणत्तप्पसंगादो । तं जहा- लोगस्स संखेज्जदिभागं सलागभूदं ठवेदण मणदव्ववग्गणाए अणंतिमभाएण सगोहिणाणावरणकम्मपदेसु णिव्विस्सासोवचएसु समयाविरोहेण खडिदेसु चरिमेगखंडं सव्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवो जाणदि, उक्कस्सेदसोहिणाणी पुण एगसमयपबद्धमेगवारखंडिदं । ण चेगणाणासमयपबद्धकओ विसेसो, एत्थ तग्गुणगारस्स पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तस्स पहाणत्ताभावादो । एसा देवाणमुक्कस्सदव्वुप्पायणविही णासिद्धा, 'सखेत्ते य सकम्मे रूवयदमणंतभागो' त्ति सुत्तसिद्धत्तादो त्ति । तेण जहण्णदव्वादो तप्पाओग्गवियप्पेसु गदेसु ओरालियदव्वं सविस्ससोवचयमवणेदृण कम्मइयसमयपबद्धो णिविस्सासोवचओ दायव्वो, ओरालिय
वर्गणामें 'जब तक लोक है तब तक प्रतिपाती है, ऊपर अप्रतिपाती है। ऐसा कथन है, अर्थात् क्षेत्रकी अपेक्षा उत्कर्षसे लोकको विषय करनेवाला देशावधि प्रतिपाती और इससे आगेके परमावाधे व सर्वावधि अप्रतिपाती हैं । द्विचरम कालके ऊपर एक समयका प्रक्षेप करनेपर देशावधिका उत्कृष्ट काल एक समय कम पल्य होता है।
ऐसी जो अन्य आचार्योंके व्याख्यानक्रमकी प्ररूपणा है वह युक्तिसे घटित नहीं होती, क्योंकि, वैसा माननेपर सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देवोंके उत्कृष्ट अवधिद्रव्यसे उत्कृष्ट देशावधिद्रव्यके अनन्तगुणत्वका प्रसंग आवेगा। वह इस प्रकारसे- लोकके संख्यातवे भागको शलाका रूपसे स्थापित करके मनोद्रव्यवर्गणाके अनन्तवें भागका विनसोपचय रहित अपने अवधिज्ञानावरणकर्मप्रदेशों में आगमानुसार भाग देनेपर अन्तिम 'एक खण्डको सर्वार्थसिद्धि विमानवासी देव जानता है, परन्तु उत्कृष्ट देशावधिशानी एक वार खण्डित एक समयप्रबद्धको जानता है। और एक समयप्रबद्ध और नाना समयप्रबद्ध कृत भेद भी नहीं है, क्योंकि, यहां पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र उसके गुणकारकी प्रधानताका अभाव है । यह देवोंके उत्कृष्ट द्रव्यकी उत्पादनविधि असिद्ध नहीं है, क्योंकि, वह ' अपने क्षेत्रमेंसे एक प्रदेश उत्तरोत्तर कम करते हुए अपने अवधिज्ञानावरणकर्मका अनन्तवां भाग है' इस सूत्रसे सिद्ध है। इस कारण जघन्य द्रव्यसे आगे उसके योग्य विकल्पोंके वीत जानेपर विनसोपचय सहित औदारिक द्रव्यको छोड़कर विस्रसोपचय रहित कार्मण समयप्रबद्ध देना चाहिये, क्योंकि, औदारिक
१ प्रतिषु 'पडिवादि' इति पाठः।
२ उक्कस्स माणुसेसु य माणुस-तेरिच्छए जहण्णोही । उक्कस्स लोगमेतं पडिवादी तेण परमपडिवादी॥ ध.अ.प्र.पत्र ११९२. महाबंध १, पृ.२३.पडिवादी देसोही अप्पडिवादी हवंति सेसाओ। मिग्छ अविरमणं ण य परिवज्जति चरिमदुगे । गो. जी. ३७५.
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