Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३०] छक्खंडागमे वेयणाखंड
[४, १, २. जहण्णो चेव । पुणो तदियदव्ववियप्पमवट्ठिदभागहारस्स समखंड करिय दिण्णे तत्थ एगखंडमुवरिमदव्ववियप्पो होदि । तदियभावम्हि तप्पाओग्गअसंखेज्जरूवेहि गुणिदे उवरिमोहिभाववियप्पो होदि । एवं पुणो पुणो कादूण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता दव्व-भाववियप्पा उप्पाएयव्वा । एवमुप्पादिदे बिदियखेत्तवियप्पस्सुवरि एगो हि आगासपदेसो वड्डावेदव्यो । तदा खेत्तस्स तदियवियप्पो हेदि । कालो जहणणो चेव । सणि सण्णिमव्वामोहो अणाउलो समचित्तो सोदारे संबोहेंतो अंगुलस्स असंखेज्जदिमागमेत्तदव्व-भाववियप्पे उप्पाइय वक्खाणाइरिओ खेत्तस्स चउत्थ-पंचम-छ?-सत्तमपहुडि जाव अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्ते ओहिखेत्तवियप्पे उप्पाइय तदो जहण्णकालस्सुवरि एगो समओ वड्ढावेदव्यो । एवं बड्डाविदे कालस्स बिदियवियप्पो हेोदि । पुणो वि अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तदव्व-भाववियप्पेसु गदेसु खेत्तम्हि एगो आगासपदेसो वड्ढावेदव्यो । एदेण कमेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तेसु खेत्तवियप्पेसु गदेसु कालम्मि एगसमयं वड्डाविय कालस्स तदियवियप्पो उप्पाएदव्यो ।
एत्थ चोदगो भणदि- अंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तेसु खेत्तवियप्पेसु गदेसु कालम्मि एगो समओ वड्ढदि त्ति ण घडदे, एवं वड्डाविज्जमाणे देसोहीए उक्कस्सखेत्ताणुप्पत्तीदो,
पश्चात् तृतीय द्रव्यविकल्पको अवस्थित भागहारके ऊपर समखण्ड करके देनेपर उनमें एक खण्ड उपरिम द्रव्यविकल्प होता है। तृतीय भावविकल्पको तत्प्रायोग्य असंख्यात रूपोंसे गुणा करनेपर अवधिका उपरिम भावविकल्प होता है। इस प्रकार पुनः पुनः करके अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र द्रव्य और भावके विकल्प उत्पन्न कराना चाहिये। इस प्रकार उक्त विकल्पोंको उत्पन्न करानेपर द्वितीय क्षेत्रविकल्पके ऊपर एक आकाशप्रदेशको बढ़ाना चाहिये। तब क्षेत्रका तृतीय विकल्प होता है। काल जघन्य ही रहता है। धीरे धीरे भ्रान्तिसे रहित, निराकुल, समचित्त व श्रोताओंको सम्बोधित करनेवाला व्याख्यानाचार्य अंगुलके असंख्यातवें भागमात्र द्रव्य और भावके विकल्पोंको उत्पन्न कराके क्षेत्रके चतुर्थ, पंचम, छठे एवं सातवें आदि अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र तक अवधिके क्षेत्रविकल्पोंको उत्पन्न कराके पश्चात् जघन्य कालके ऊपर एक समय बढ़ावें। इस प्रकार बढ़ानेपर कालका द्वितीय विकल्प होता है । फिरसे भी अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र द्रव्य और भावके विकल्पोंके वीत जानेपर क्षेत्र में एक आकाशप्रदेश बढ़ाना चाहिये। इस क्रमसे अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र क्षेत्रविकल्पोंके वीत जानेपर कालमें एक समय बढ़ाकर कालका तृतीय विकल्प उत्पन्न कराना चाहिये ।
शंका-यहां शंकाकार कहता है कि अंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र क्षेत्रविकल्पोंके वीत जानेपर कालमें एक समय बढ़ता है, यह घटित नहीं होता; क्योंकि, इस प्रकार बढ़ानेपर देशावधिका उत्कृष्ट क्षेत्र नहीं उत्पन्न हो सकता, व अपने उत्कृष्ट
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