Book Title: Shatkhandagama Pustak 09
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे वैयणाखंडं
[ ४, १, २.
एम्हादो वक्खाणादो वा जाणिज्जदि गुणगाराणमण्णोष्ण भासो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो चैव होदिति । एदेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण घणंगुले भागे हिदे घणंगुलस्स असंखेज्जदिभागो सूचिअंगुलस्स असंखेज्जदिभागमेत्तुस्सेहविक्खभायामो आगच्छदि । एदं जहण्णोहिक्खेत्तं जहण्णोहिणाणेण विसईकदासेसखेत्तमिदि उत्तं होदि । ण च घणपदरागारेणेत्र सव्वाणि ओहिखेत्ताणि अवट्ठिदाणि त्ति नियमो; किंतु सुहुमणिगोदोगाहणखेत्तं व अणियदसंठाणाणि ओहिखेत्ताणि संपिंडिय घणपदरागारेण काऊण पमाणपरूवणा करदे, अण्णा तदुवायाभावादो ।
सुहुमणिगोदजहण्णो गाहणमेत्तमेदं सव्वं हि जहण्णोहिक्खेतमोहिणाणिजीवस्स तेण परिच्छिज्जमाणदव्वस्स य अंतरमिदि के वि आइरिया भणति । णेदं घडदे, सुहुमणिगोदजहण्णागाहणादो जहण्णो हिक्खेत्तस्स असंखेज्जगुणत्तप्पसंगादो । कधमसंखेज्जगुणत्तं ? जहण्णोहिणाणविसयवित्थारुस्सेहेहि आयामे गुणिज्जमाणे तत्तो असंखेज्जगुणत्तसिद्धीदो । ण चासंखेज्जगुणत्तं संभवदि, जदेही सुहुमणिगोदस्स जहण्णोगाहणा तदेहिं चैव जहण्णोहि
ख्यातगुणा है; यह जाना नहीं जाता ' इस व्याख्यानसे जाना जाता है कि गुणकारोंका अन्योन्य गुणनफल पल्योपमके असंख्यातवें भाग ही है ।
इस पल्योपमके असंख्यातवें भागका घनांगुलमें भाग देनेपर घनांगुलके असंख्यातवें भाग सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग मात्र उत्सेध, विष्कम्भ व आयाम रूप क्षेत्र आता है । यह जघन्य अवधिक्षेत्र अर्थात् जघन्य अवधिज्ञानसे विषय किया गया सम्पूर्ण क्षेत्र है । और घनप्रतराकारसे ही सब अवधिक्षेत्र अवस्थित हैं, ऐसा नियम नहीं है; किन्तु सूक्ष्म निगोद जीवके अवगाहनाक्षेत्र के समान अनियत आकारवाले अवधिक्षेत्रोंका समीकरण कर घनप्रतराकारसे करके प्रमाणप्ररूपणा की जाती है, क्योंकि, ऐसा करने के विना उसका कोई उपाय नहीं है ।
सूक्ष्म निगोद जीवकी जघन्य अवगाहना मात्र यह सब ही जघन्य अवधिज्ञानका क्षेत्र अवधिज्ञानी जीव और उसके द्वारा ग्रहण किये जानेवाले द्रव्यका अन्तर है, ऐसा कितने ही आचार्य कहते हैं । परन्तु यह घटित नहीं होता, क्योंकि, ऐसा स्वीकार करनेसे सूक्ष्म निगोद जीवकी जघन्य अवगाहनासे जघन्य अवधिज्ञानके क्षेत्रके असंख्यात - गुणे होनेका प्रसंग आवेगा ।
शंका-असंख्यातगुणा कैसे होगा ?
समाधान - क्योंकि, जघन्य अवधिज्ञानके विषयभूत क्षेत्रके विस्तार और उत्सेधसे आयामको गुणा करनेपर उससे असंख्यातगुणत्व सिद्ध होता है । और असंख्यातगुणत्व सम्भव है नहीं, क्योंकि, ' जितनी सूक्ष्म निगोद जीवकी जघन्य अवगाहना है उतना ही
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