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बोल २६ वां पृष्ठ २६१ से २६४ तक
नाव आता हुआ पानी बतलाना साधुका कल्प नहीं है इसलिये वह नाव में आता हुआ पानी नहीं बनलाता परन्तु शास्त्रीय विधानानुसार वह अपनी और दूसरे की रक्षा करता है ।
बोल २७ वां पृष्ठ २६४ से २६८ तक
निशीथ सूत्रमें वन्धन और मोचनसे होने वाले दोषकी निवृत्ति के लिये त्रस प्राणीको बांधने और छोड़नेका निषेध किया है परन्तु जहां बांधे और छोड़े बिना त्रस प्राणीको रक्षा नहीं हो सकती हो वहां बांधने और छोड़नेका निषेध नहीं है ।
बोल २८ वां पृष्ठ २६८ से २६९ तक.
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आजको किया दूसी है और अनुकम्पा दूसरी है इसलिये आने जाने की क्रिया के सावध होने से सुरसापर हरिणगमेसीको अनुकम्पा सावद्य नहीं हो सकती ।. बोल २९ वां पृष्ठ २६९ से २७० तक
श्रीकृष्णजीकी वृद्ध पर अनुकम्पा करना सावध नहीं थी क्योंकि ईट उपाड़नेकी क्रिया न्यारी है और अनुकम्पा न्यारी है ।
बोल ३० वां पृष्ठ २७० से २७२ तक
हरिकेशी मुनि पर अनुकम्पा करके यक्षने ब्राह्मगों को समझाया था परन्तु जब वे मारने दौड़े तो मारने के बदले में उसने भी मारा था ।
बोल ३१ व पृष्ठ २७३ से २७५ त
धारिणी रानीकी गर्भानुकम्पाको मोह अनुकम्पा कहना अज्ञान है । धारिणी ने गर्भानुकम्पासे मोहको छोड़ दिया था तथा अंजयणाका परित्याग किया था । बोल ३२ वां पृष्ठ २७५ से २७६ तक
अभयकुमार की प्रीति के लिये देवता का मेघ बरसाना कहा
:
ज्ञाता सूत्रके मूलपाठ है अनुकम्पाके लिये नहीं ।
बोल ३३ वां पृष्ठ २७६ से २७९ तक
श्यणा देवी पर जिन ऋषि का करुण रस उत्पन्न हुआ था अनुकम्पा उत्पन्न
नहीं हुई थी ।
बोल ३४ वां - पृष्ठ २७९ से २८२ तक
aarat भक्ति दूसरी चीज है और नाटक दूसरा है अतः नाटक के सावध होने पर भी भक्ति सावद्य नहीं है ।
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