________________
वस्त्र पहनकर ही हम फिर शुद्ध हो सकेंगे। ऐसों को मन्दिर के अन्दर ले जाएंगे? यह ध * "मारा रा , मोई नहीं। मनसत. नहीं मेंगे।"
"मतलब हुआ, आप श्रेष्ठ हैं और वे नीच; यही न?'' "हमारा जन्म ही उत्तम वंश में हुआ।" "यह संसार किसकी सृष्टि है?" "उस भगवान की ही है।" "आपके कितने बच्चे हैं?" "छह।" "उनमें श्रेष्ठ कौन है?'' "हमारे सभी बच्चे हमारे लिए बराबर हैं।"
"मतलब हुआ कि केवल आपके लिए आपके बच्चे समान हैं। यह समानता केवल आप तक सीमित है ? भगवान् के लिए अपने बच्चों में ऐसी ही समानता नहीं, ऐसा आप समझते हैं? आप लोग आपस में भेद की कल्पना कर सकते हैं किन्तु भगवान के लिए वह भेदभाव नहीं । आचार्यजी ने भी यही बात कही है। संघर्ष के लिए मौका न देकर चुपचाप रास्ता छोड़ दीजिए।"
"हमें यह शोभा नहीं देता।"
"ऐसा है तो आप जा सकते हैं। आप लोगों को यहाँ रहने के लिए मजबूर कोई नहीं कर रहा । कुछ लोगों को पसन्द नहीं, इसलिए हम जनता एवं आचार्यजी को जो पसन्द है उमे करने से नहीं रुकेंगे।"
"धर्मपोपक महाराज के लिए धर्म-विरोधी काम करना उचित है?" "हमें अपना धर्म मालूम है। आपसे सीखना नहीं है।"
"इसका अर्थ हम समझते हैं। नाम के लिए श्रीवैष्णव, कर्म सब जैन पद्धति के अनुसार करनेवाले महाराज हैं, यही हुआ। इस जैन पट्टमहादेवी को आगे करके समस्त कार्य करनेवाले आपका धर्म क्या है सो दुनिया को मालूम हो गया। चर्मकारों का प्रवेश कराके इस मन्दिर को अपवित्र बनाने से बेहतर है कि हम जैसे श्रेष्टों का रक्त बहे। रणभूमि में रक्त ब्रहाने पर जैसे आपके लिए वीरस्वर्ग है वैसे यहाँ रक्त बहेगा तो हमें धर्मस्वर्ग की प्राप्ति होगी। अहिंसा का ढोंग करनेवाले ये जिनभक्त क्या करेंगे, सो हम भी देख लेंगे।" तिलकधारी ने कहा।
"अर्हन, धर्म के नाम से यह कैसा अन्धकार फैला है? इसीलिए उपनिषदों ने गाया है : 'तमसो मा ज्योतिर्गमय'। धर्मान्धता से बड़ा अन्धकार दूसरा क्या है? इस अन्धकार में ज्योति जगाओ" कहकर, हाथ जोड़कर शान्तलदेवी ने प्रार्थना की। समस्त क्रियाओं के साक्षी, ज्योति प्रदान करनेवाले, सस्य जाति के लिए भी चेतना प्रदान करनेवाले आकाश के ठीक बीच में प्रकाशमान सूर्य भगवान् को देखकर, फिर आँखें
38 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार