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"हो, य पादत्राण कशव भगवान् के आदेश के अनुसार तयार करके लाये गये हैं।" आगमशास्त्रियों ने कहा।
"उस भगवान ने आकर आपसे कहा है? अभी तो प्राण प्रतिष्टा हुई है। इसके पहले इस भगवान् का अस्तित्व ही कहाँ था?'' तिलकधारी की आवाज ऊँची हुई।
"तो क्या केशव भगवान् अभी उत्पन्न हुए हैं? आपकी बात भी अजीब है! मानव सृष्टि के कारण-कतां भगवान् केशव के अस्तित्व पर ही शंका करनेवाले आपके विश्वास का आधार ही नहीं रहा? आपके सर्वांग पर लगे इन लांछनों का क्या महत्त्व रहा है? विश्वास रहित, अशुद्ध मन वाले आप, लगता है, इस विषय को समझते ही नहीं हैं।"
"मैं समझता नहीं? छोड़िए। और भी सैकड़ों हैं, कई सैकड़ों की संख्या में लोग होंगे। उन सबको बुलाकर पूछ लीजिए। चर्मकारों को अन्दर आने देने को किस केशव भगवान ने कहा है ? उन्हें कहने दें। जल्दी न करें। इस पवित्र कार्य को सम्पन्न कर आपने भी-अभी प विष्टा ही अब उस भगवान को अपवित्र न बनावें।मैं अभी आया," कहकर वह भीड़ में गायब हो गया।
दो-चार क्षणों के अन्दर, एक तैयार सेना की तरह तिलकधारियों का झुण्ड उस तिलकधारी के साथ वहाँ आ पहुँचा 1 वे लोग रास्ता, रास्ता' चिल्लाते हुए महाद्वार के पास से लेकर पादत्राणों के उन पीढ़ों तक कतार बाँधकर खड़े हो गये। उस टोली का तिलकधारी नेता जोर-जोर से चिल्लाकर कहने लगा, "इन्हें अन्दर ले जाना हो तो हमें रौंदकर जायें। जहाँ जो खड़े हैं वे वहीं बैठ जावें ।'
आगमशास्त्री ने पट्टमहादेवी की ओर देखा। शान्तलदेवी ने कुँवर बिट्टियाणा के कान में कुछ कहा। वह वहाँ से चला गया।
पट्टमहादेवी ने कहा, ''इन पादत्राणों को तैयार करने वाले चर्मकार मेरे पास आकर खड़े हो जावें।"
वे दोनों कुछ संकोच से नत हो, वहाँ आकर खड़े हो गये।
"इन पादत्राणों को तैयार करने के लिए राजमहल ने आदेश दिया था?"शान्तलदेवी ने पूछा।
"नहीं।" दोनों ने जवाब दिया। "तो इन्हें यहाँ क्यों ले आये?"
"उस हमारे सिरजनहार पिता ने स्वप्न में आकर आदेश दिया, सो हम बनाकर ले आये।" दोनों ने कहा।
"क्या आदेश दिया था?"
''मैं केशवदेव हूँ। वेलापुरी में शक संवत् 1039 हेमलम्ब संवत्सर, चैत सुदी पंचमी को स्थिरवासर के अभिजिन मुहूर्त में प्रतिष्ठित होने वाले चेन्नकशव देव में मेरा
36 :: पट्टमहादेवो शान्तला : भाग चार