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बल्लाल किंकर्तव्यविमूढ़ बैंठा था। प्रभु ने का. "अप्पाजी. तुमको भी ऐसा बरतना होगा कि मानो तुम्हें, कुछ मालूम नहीं, वोकि तुम कभी-कभी वहां जाया आवा करत हो । ननुहल के कारण सम्व है तुम उन बच्चों में पृछ भी बैटो। इसलिए अभी से सचेत कर दिया है। सावधान रहना। साझे:''
बल्लाल ने सहमति में सिर हिला दिया। परन्तु उसके भीतर हल अपेक्षाकृत अधिक बढ़ता जा रहा था। तरह-तरह के विचारों का तांता सा लग गश था । वह सोचने लगा-- दण्डनायक के घर में वामाचारी आर कोई ठमके बारे में काल बताये भी नहीं! कम-से-कम पद्मला को तो कहना चाटिरा था । सव राप्त रूप से चल रहा है। इसका कारण क्या है? आदि आदि।
बल्लाल के मन में इस तरह के विचार आतं-जान रहे आर प्र] परिवंग अपनी बात कहने गये। बेटे को इस तरह सचेन कर प्रधान की और दुवारा देखता वाले, "प्रधानजी, यह वात वृद्ध महान क्रं. कानों में न पड़े। इसमें उन्हें बड़ा आपात लगेगा। कही किसी कान में पड़े रहनवाले यांना को बालमान और निष्ठावान रामडाकर. पास बुलाकर, सा प्रकार से उसकी देखभान्न का इतन ऊन आसन पर ला विटावा, वही व्यक्ति वामाचार में आसका हो गया - यह खबर महाराज सुने जा नशिबानागा। इसलिए मिनहाल यह बात उनके कानों तक न पहुंचे। सच्चाई क्या है इस जानकर, आर फिर सोच-विचारकर, राष्ट्रनिष्ठा को ध्यान में रखत हा आवश्यक प्रतीत होने पर हैं। बताग। तब तक नहीं। ठीक है न"
गराज न सिर हिलाकर सूचित किया “टीक है। कष्टचोल नहीं .
"सापकी व्याकुलता को हम समझते हैं। दण्डनायिका आपकी बहिन है. इससे आपके हृदय : कितनी पोड़ा हई होगी, या हम पूरी तरह समझते हैं। इस विषय की पूरी-पूरी जानकारी प्राप्त करने के अनक साधन हैं। फिर भी हम चात हैं कि यह काम आप खुद करें। इसका एक मुख्य कारण है। यह विपत्र मापका दुविधा में डाल देगा, अनेक प्रकार की उलझनें पटा करगा . यह भी में पान्नूम हं. फिर भी राजमहल का साप पर गुढ़ विश्वास है. इस बात का जानकारी आपको हानी ही चाहिए। इसलिए हमने दूसरे माधनां पर ध्यान नहीं दिया है। हम जानते हैं कि आप किसी भी हालत में सत्य को छिपाग नहीं। आपकं इस गुण से हम पूरी तरह आश्वस्त हैं।"
गंगराज बेटे-बेटे युवगज की इन बातों को भुनते रहे। उनके चेहरे पर भाव परिवर्तन का कोई चिन लक्षित नहीं आ । वामाचारी की बात अचानक उठने पर एक बार उनके शरीर में कम्पन तो हुआ था, लकिन उसके बाद उनका संयम बधावत् बना रहा।
18 :: पहभादवी शान्तना : भाग दो