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* नीतिवाक्यामृत
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और मांसभक्षण चाहि दुराचारीको सदाचार समझना एवं प्रतीतिवाधित तत्वोंको मोक्षोपयोगी तत्व समझना यही मिध्यात्व है विवेकीको इसका त्याग करना चाहिये ॥१॥
तथापि जो इस मृदुताको नहीं छोड़ता वह मिध्यादृष्टि है उसे अपना सर्वनाश करना नहीं ||२||
उदाहरणार्थ:--नदी और तालाब आदिमें धर्म समझकर स्नान करना, पत्थरोंके ढेर लगाने में धर्म मानना, पहाड़से गिरने तथा अग्नि में जलमरने में धर्म मानना, राग, द्वेष और मोहयुक्त देवताओंकी पुत्रादिकी बाहसे उपासना करना, संसारमें घुमाने वाले दम्भी और पाखण्डियोंका सत्कार करना, महके समय सूर्य और चन्द्रमा श्रादिकी पूजा के निमित्तसे स्नान करना, गौको अनेक देवताओंका निवास मकर पूजना तथा उसके सूत्रको पीना, हाथी घोड़ा और रथादिककी पूजा करना, और पृथ्वी, यक्ष, और पहाड़ोंकी पूजा करना इसे मिध्यात्व समझना चाहिये। जो व्यक्ति उक्त मिध्यात्व में प्रवृत्त होता हम दोनों लोकोंके सुखोंसे वचित रहकर अपना सर्वनाश करता है।
(२) का कथन :
सिधर्मका निरूपण करनेवाले आगमप्रन्धों ( प्रथमानुयोग और करणानुयोगादि ) तथा और चारित्रको दूषित न करनेवाले लोकोपयोगी कलाओंके समर्थक शास्त्रोको छोड़कर मद्यपान असत्प्रवृतिके समर्थक शायका पद सुनना आदि अज्ञान है उसे महाभयानक
दुःखका कारण समझकर त्याग करना चाहिये । (1) असंयमका निरूपण :
हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह, यह असंयम है और यह प्राणीको इस लोक तथा परलोक में दुःख देनेवाला है। इसके ३ क्षेत्र है- (१) मानसिक, (२) वाचनिक और कायिक |
(१) मानसिक असंयम :--
अपनी मिता, पूजा, कुल, जाति और वन आदिका अभिमान करना, दूसरोंके गुणों या सम्पत्ति wife पड़ती देखकर उनसे ईर्ष्या करना और दूसरोंका बुरा चितवन करना आदि मानसिक ( मनसे पैदा होनेवाला ) असंयम है ।
(E) बावनिक असंयम :--
दूसरोंके मर्म को भेदन करनेवाले, असत्य, असभ्य और अप्रिय ( कठोर ) वचन बोलना या आगमसे विरुद्ध प्रलाप करना, परनिन्दा, आत्मप्रशंसा और खुगली करना आदि वाचनिक ( वचनसे पैदा होनेवाला) असंयम है।
(३) कायिक असंयम :
प्राणियों की हिंसा करना, कुशील, चोरी और जुआ खेलना आदिको कायिक असंयम कहते हैं । शास्त्राने हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह ये पाँच पाप, प्रमाद ( कुशल क्रियाओं में