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36 :: मूकमाटी-मीमांसा
का सम्प्रेषक उद्गार है ।
'सावित्री' और 'मूकमाटी' की प्रेरणा भूमि, प्रतिपाद्य लक्ष्य एवं अभिव्यंजना शिल्प के सम-विषम आयामों के दिग्दर्शन के उपरान्त उभय कृतियों का किंचित् स्वतन्त्र सापेक्षिक मूल्यांकन भी अपेक्षित है। भविष्यद्रष्टा दिव्यस्रष्टा श्री अरविन्द का आर्ष महाकाव्य 'सावित्री' मन्त्रकाव्य है, ऋचाकाव्य है । मन्त्र की रचना नहीं होती, मन्त्र का दर्शन होता | 'सावित्री' मन्त्रद्रष्टा की पश्यन्ती वाणी के माध्यम से अभिव्यक्त अतिमानस चेतना का संवाहक रहस्यवादी महाकाव्य है, जिसका अवतरण अवाङ्मनसगोचर सच्चिदानन्दमय परम व्योम के सोम स्रोतों से हुआ है। श्री अरविन्द की वैश्व भागवत संसिद्धि के अनेक रहस्यमय आयामों को आत्मसात् करने वाली 'सावित्री' वस्तुत: उनके समग्र जीवन की उदात्ततम उपलब्धि है। मूल कथा व्यास के महाभारत से ग्रहण की गई है पर श्री अरविन्द ने उसे अपनी अद्भुत दिव्यभावयोग प्रेरित कारयित्री प्रतिभा के संस्पर्श से सर्वथा अभिनव परिवेश प्रदान कर दिया है। सारी कथा एक गाथा मात्र न होकर एक प्रतीक बन गई है जिसमें कथा, गाथा, इतिहास और अध्यात्म का विराट् समन्वय चरितार्थ हुआ है। महाभारत मूल कथा के ढाँचे को सुरक्षित रखते हुए श्री अरविन्द ने उसे अतीत के चमत्कारक इतिवृत्त के धरातल से उठा कर भविष्य के संस्कारक चिन्मय सत्य ऊर्ध्व शिखरों पर प्रतिष्ठित किया है। महाभारत की 'सावित्री' एक पतिव्रता भारतीय नारी के समुज्ज्वल आदर्श तथा उसके बल पर पति सत्यवान के पुनर्जीवन की वरदान प्राप्ति की गाथा मात्र है। श्री अरविन्द की 'सावित्री' सत्यवान की अनन्य अनुरागिनी जीवनसंगिनी होने के साथ-साथ परात्परा शक्ति का अवतार है, जो मात्र अपने पति के पुनर्जीवन दान से सन्तुष्ट न होकर सारी मानवता, सारी धरती के सनातन अमरत्व की प्रतिष्ठा हेतु कृत संकल्प है :
Savitri is represented in the poem as an incarnation of The Divine Mother. This incarnation is supposed to have taken place in far past times when the whole thing had to be opened, so as to "how the ways of Immortality". - Shri Aurobindo - Letters on 'Savitri' (P.729)
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सावित्री मर्त्य के अमरत्व का, मृत्यु की मृत्यु का काव्य है । श्री अरविन्द का सत्यवान परमा शक्तिस्वरूपिणी सावित्री द्वारा वरण किए हुए चिन्मय पुरुष का नरावतार है। सावित्री के मानव पिता अश्वपति धरा पर जीवन के सनातन अमरत्व की प्रतिष्ठा हेतु परात्परा परमा शक्ति के अवतरण का आवाहन करने वाले राजर्षि हैं, जिनका तप, जिनका पूर्णयोग मात्र व्यष्टि सिद्धि के लिए नहीं वरन् समष्टि संसिद्धि के व्यापक उद्देश्य से प्रेरित है ।
श्री अरविन्द के सावित्री महाकाव्य में सावित्री - सत्यवान की गाथा अन्य वैदिक गाथाओं की परम्परा में एक शाश्वत चैतन्य की विकास कथा का प्रतीक बन गई है। इस स्तर पर प्रस्तुत गाथा के सभी प्रमुख पात्र अपना ऐतिहासिक अस्तित्व रखते हुए भी किन्हीं विशिष्ट तत्त्वों के प्रतीक हैं। सत्यवान अपने भीतर सत्ता के भागवत सत्य को धारण किए हुए आत्मा है, जो मरण और अज्ञान के पाश में बँध कर अवतरित हुआ है। 'सावित्री' दिव्य शब्द है, सविता की पुत्री है, परम सत्य की देवी है, जो लोकरक्षार्थ धरा पर अवतरित होती है। 'सावित्री' का मानव पिता अश्वपति तपस्या के आध्यात्मिक पुरुषार्थ की संकेन्द्रित ऊर्जा के प्रतीक हैं जो हमें मर्त्य से अमर्त्य स्तरों पर आरोहण करने में सहायक हैं। सत्यवान का पिता द्युमत्सेन भागवत मन है, जो अपनी दिव्य दृष्टि का साम्राज्य खोकर और उसी के कारण दीप्तिहीन होकर अन्धा हो गया है :
The tale of satyavan and savitri is recited in The Mahabharata as a story of conjugal love conquering death. But this legend is, as shown by many features of the human tale, one of many symbolic myhts of the vedic cycle. Satyavan is the soul carrying the divine truth of being within itself but descended into the grip of death and ignorance; Savitri is the divine word, daughter of the Sun, goddess of supreme truth who comes down and is born to save; Aswapati, the lord of the Horse, her