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'मूकमाटी' : लीक से हटकर प्रतिभा का परिचय देने वाली रचना
डॉ. ओम प्रकाश गुप्त जब कभी साहित्यकारों ने लीक से हटकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है, आलोचक के लिए नई चुनौतियाँ बनी हैं। वर्तमान युग में महाकाव्य उस शास्त्रीय चौखटे से बहुत बाहर निकल आया है जिसका निर्माण आचार्यों ने शताब्दियों पूर्व किया था । आचार्य विद्यासागर कृत महाकाव्य 'मूकमाटी' ऐसी ही कृति है।
लेखक जैन धर्माचार्य हैं और स्वाभाविक है कि उनकी स्थापनाएँ उक्त धर्म के सिद्धान्तों से प्रभावित हुई हैं। अपने ग्रन्थ की भूमिका 'मानस तरंग' में लेखक ने इन्हीं सिद्धान्तों पर आधारित कुछ प्रश्न प्रस्तुत किए हैं । ये प्रश्न वस्तुत: ऐसे लोगों के समक्ष रखे गए हैं जो 'निमित्त' कारणों के प्रति आस्था नहीं रखते। आगे बढ़ने से पूर्व इनमें से कुछ प्रश्नों पर दृष्टि डालना उचित होगा : “क्या आलोक के अभाव में कुशल कुम्भकार भी कुम्भ का निर्माण कर सकता है ?" अथवा "...क्या कुम्भ बनाने की इच्छा निरुद्देश्य होती है ?"
निराकार ईश्वर द्वारा सृष्टि-रचना के तर्क को झुठलाते हुए आचार्यप्रवर लिखते हैं : "अशरीरी होकर असीम सृष्टि की रचना करना तो दूर, सांसारिक छोटी-छोटी क्रिया भी नहीं की जा सकती।" किन्तु आगे चलकर जब वे लिखते हैं : "हाँ, संसारी ईश्वर बन सकता है, साधना के बल पर, सांसारिक बन्धनों को तोड़कर", तो वह स्वत: एक धार्मिक उपदेष्टा से साहित्य सर्जक की भूमिका ग्रहण करने लगते हैं। काव्य मर्मज्ञों ने काव्य को भावयोग के क्षेत्र की साधना कहकर काव्य और शास्त्र का विभेद स्पष्ट करने का यत्न किया है।
'मूकमाटी' का लेखक साधना को सृजन से अलग नहीं मानता और यह सृजन सृष्टि में सतत चलने वाली प्रक्रिया का पर्याय है । धरती माटी से कहती है :
“आस्था के विषय को/आत्मसात् करना हो उसे अनुभूत करना हो/तो/साधना के साँचे में
स्वयं को ढालना होगा सहर्ष !" (पृ. १०) सृजन की इस यात्रा में एक निमित्त कुम्भकार भी है। मिट्टी स्वयं परिश्रम नहीं करती, परिश्रम तो कुम्भकार
करता है।
'मूकमाटी' का लेखक कुम्भकार की जिस सृजन साधना को काव्य का विषय बनाता है, वह 'अज्ञेय' की 'असाध्य वीणा' के केशकम्बली की साधना के बहुत निकट है। उसका मानना है :
"केवल क्षेत्रीय ही नहीं/भावों की/निकटता भी/अत्यन्त अनिवार्य है
इस प्रतीति के लिए।" (पृ. ३५) इस भागवत प्रतीति के लिए करुणा एवं दया की अनिवार्यता स्वीकार की गई है, क्योंकि :
"दया का होना ही/जीव-विज्ञान का/सम्यक् परिचय है।" (पृ. ३७) ____ मिट्टी से कुम्भ बनने की पूरी प्रक्रिया सामान्य मनुष्य के उदात्तीकरण की प्रक्रिया है। मिट्टी जिन-जिन दशाओं से गुज़रती है, वे साधना पथ की विभिन्न स्थितियाँ हैं । इनमें सबसे प्रमुख है विनम्रता, क्योंकि :
"खरा शब्द भी स्वयं/विलोमरूप से कह रहा हैराख बने बिना/खरा-दर्शन कहाँ ?" (पृ. ५७)