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422 :: मूकमाटी-मीमांसा इसी प्रकार ‘अतिथि' शब्द के लिए उन्होंने उसकी महत्ता बताते हुए कहा है :
"अतिथि के बिना कभी/तिथियों में पूज्यता आ नहीं सकती
अतिथि तिथियों का सम्पादक है ना !" (पृ. ३३५) सज्जनों के साथ मित्रता करना श्रेयस्कर है। कवि ने दुर्जन की संगत और सज्जनों की संगत से पड़ने वाले प्रभाव का चित्रण किया है । यह चित्रण 'नीति शतकम्' में भी इस रूप में हमें प्राप्त होता है :
"आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण, लध्वी पुरा वृद्धिमुपैती च पश्चात् ।
दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना, छायेव मैत्री खलसज्जनानाम् ॥” ५०॥ सन्त की पहचान के सम्बन्ध में कवि ने सुन्दर वर्णन किया है :
"सदा-सर्वथा चरणों लखते/विनीत-दृष्टि हो चलते हैं।” (पृ. ३६०) 'श-ष-स' वर्गों को नए अर्थ में कवि ने प्रतिपादित किया है :
" 'श' यानी/कषाय का शमन करने वाला,/शंकर का द्योतक, शंकातीत, शाश्वत शान्ति की शाला"!/'स' यानी/समग्र का साथी जिसमें समष्टि समाती,/संसार का विलोम-रूप/सहज सुख का साधन समता का अजम्र स्रोत"!/और/'ष' की लीला निराली है। 'प' के पेट को फाड़ने पर/'ष' का दर्शन होता है'प' यानी/पाप और पुण्य ।” (पृ. ३९८)
काव्य के अन्त में कवि ने "सर्वे सुखिन: भवन्तु" के आधार पर कुछ तथ्य हमें सौंपे हैं :
“संहार की बात मत करो,/संघर्ष करते जाओ!
हार की बात मत करो,/उत्कर्ष करते जाओ !" (पृ. ४३२) इसी से मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है। कवि ने महाकाव्य के अन्त में कामना की है :
“यहाँ"सब का सदा/जीवन बने मंगलमय
छा जावे सुख-छाँव,/सबके सब टलें-/अमंगल-भाव ।” (पृ. ४७८) यही 'मूकमाटी' का कथ्य है, जिसे कवि ने प्रतीक कथा के रूप में प्रस्तुत किया है। अनेक प्रासंगिक कथाओं का आधार लेकर अध्यात्म की जिस उच्चभूमि में पहुँच कर व्यक्ति, अपनत्व को विस्मृत कर ‘परम' में लीन हो जाता है, वर्तमान में श्वास-प्रश्वास लेता कवि, भक्ति की दिव्यभूमि में पदार्पण कर 'सन्त' के रूप में प्रतिष्ठित हो जाता
'मूकमाटी' न केवल काव्य ग्रन्थ है वरन् यह आध्यात्मिकता की परमपूज्य भावनाओं से युक्त श्रेष्ठ महाकाव्य है । इसमें रासो काल का रस संगम है तो कबीर का ज्ञान योग भी; जायसी का पुरुष-प्रकृति प्रेम है तो सूर का वात्सल्य वर्णन भी; तुलसी का दर्शन है तो छायावादी कवियों का भाव सौन्दर्य भी; रीतिकाल का अलंकार चमत्कार है तो समसामयिक काव्य की बेबाक स्पष्टोक्ति भी। समग्रत: यह कहा जा सकता है कि 'मूकमाटी' एक श्रेष्ठ अध्यात्म रस पूर्ण महाकाव्य है।