________________
'मूकमाटी'- सप्तक
डॉ. छोटे लाल शर्मा 'नागेन्द्र' सुन्दर सलोनी 'मूकमाटी' महाकाव्य कृति,
ऐसा लगता है पाया रात में दिवस है। मिला है प्रकाश-पुंज सत्य-अनुगूंज-युत,
पता नहीं ज्ञान है कि ज्ञान का ही रस है ।। नीरस रसा के रस सरस बनाए गए,
___पा के मन तथ्य जिन्हें हो गया अवश है। मृषा-तृषा जड़ता की बिखरा रही है राशि,
निखर रही है वृत्ति, मन भी विवश है ।।१।।
'मूकमाटी' ज्ञान कुंज, भव्य भावना से पूर्ण,
पृष्ठ-पृष्ठ मानों दल रम्य उज्ज्वला के हैं। भाव, अनुभाव या विभाव रस-सिक्त सब,
जड़ता से रिक्त-पाणि पृष्ठ अबला के हैं। भाषा का प्रयोग ऐसा जग को मिलेगा कहाँ,
अद्वितीय रूप लिए काव्य की कला के हैं। चला चंचला-सा अचला को हाथ साधे हुए,
'गौरव-विभूति मुनिवर' अचला के हैं ।।२।।
कहीं शब्द, अर्थ जैसे जीवन औं' प्राण-देह,
के समान उड़ रहा प्रतिभा का केतु है। अनुभव जीवन के भव को सुधार रहे,
दर्शनों का योग हुआ साधना का हेतु है ।। आद्योपान्त शिव शिवता से है प्रवहमान,
कहीं भी विराजमान राहु है, न केतु है । बार-बार कर अवगाहन कषाय मेंट,
भव-सरिता में 'मूकमाटी' बनी सेतु है ।।३।।
जगती में 'मूकमाटी' जीवन की प्रतिलिपि,
ज्ञान की विभा में यह हिम और पानी है। माया का प्रपंच अन्धकार सब ओर जमा,
रामा में रमा के मन खो रहा जवानी है ।।