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जड़ता को, अज्ञता को, मोहमयी अन्धता को,
पालकर, जगती को बन रहा दानी है। कैसे जीव जगती में मोक्ष उपलब्ध करे,
ज्ञान की रवानी महाकाव्य की कहानी है ॥४॥
ज्ञान कुम्भकार जब लगन कुदाली थाम,
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लक्ष्य और चलता है सुन्दर स्वभाव से तर्क जैसी वंकिमा भी नहीं कमनीय जहाँ,
बल मिलता है सदा सरलता के भाव से ॥ योग उपजाता, भोग सुन्दरता जगाता, . रोग
क्षण में सुलाता, चलता न काम दाँव से । भव भय त्राता भूमिपाता है सुहानी जब,
साधना को बढ़ाता है मृदुता प्रभाव से ||५||
तापस है कुम्भकार करता विचार शुभ,
कल्पना के कुसुम खिलाता मूकमाटी से । ज्ञान परिपाटी 'मूकमाटी' में समाती और,
साधना की पाटी लिखवाती मूकमाटी से । - ओघ, तम-तोम, सुधा सोम आदि सम
अघ
जैसे चाहे पात्र बना डालो 'मूकमाटी' से । सिद्धि - शोध, सिद्धि द्वारा, सिद्ध की प्रसिद्धि और,
मूकमाटी-मीमांसा : : 475
सिद्धि शिला-पथ मिलता है 'मूकमाटी' से || ६ ||
मन्द मन्द मुदुता से ललित कथा के अंश,
छन्द-बद्ध जैसे बोल पढ़ो 'मूकमाटी' के । शब्द-अर्थ खुलते ही बोलते प्रसंग-रंग,
सौम्य बोल अनमोल पढ़ो 'मूकमाटी' के ॥ गाथा-लोक गाथा खोल, अमृत दिया है घोल,
अंग-अंग तलातोल पढ़ो ‘मूकमाटी' के । जीवन के रूप-रंग सभी यहाँ विद्यमान,
रुचिकर पृष्ठ खोल पढ़ो ‘मूकमाटी' के ॥७॥
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