Book Title: Mukmati Mimansa Part 01
Author(s): Prabhakar Machve, Rammurti Tripathi
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 621
________________ मूकमाटी-मीमांसा :: 533 २१. २२. फोन-(०५६७२) २३४३०२, मो. ९८३७१-१०२२०, प्रथमावृत्ति-१९८६, पृष्ठ-१८ । तेरा सो एक (१३ प्रवचन संग्रह), रजकण प्रकाशन, आनन्द लॉज, टीकमगढ़-४७२ ००१, मध्यप्रदेश, प्रथमावृत्ति-१९८६, पृष्ठ-४ +७२ । अकिंचित्कर (आसव-बन्ध के क्षेत्र में मिथ्यात्व के अकिंचित्कर विषयक १६ व २६ जून एव ६ अगस्त, '८६ को प्रदत्त सैद्धान्तिक प्रवचन), प्रकाशक- ज्ञानोदय प्रकाशन, पिसनहारी मढ़िया, जबलपुर-४८२ ००३, मध्यप्रदेश, प्रथमावृत्ति- २२ नवम्बर, १९८७, पृष्ठ-१६+७४, मूल्य-४ रुपए। कुन्दकुन्द का कुन्दन (आचार्य विद्यासागरजी के पद्यानुवादों में से चयनित पद संग्रह), संकलन-डॉ. जिनेन्द्रकुमार जैन, प्रकाशक- आचार्य श्री विद्यासागर शोध संस्थान, पिसनहारी की मढ़िया, जबलपुर-४८२ ००३, मध्यप्रदेश, प्रथमावृत्ति-१९८८, पृष्ठ-६८, मूल्य-३ रुपए। चेतना के गहराव में (सचित्र प्रतिनिधि काव्य संग्रह), [डूबो मत, लगाओ डुबकी' काव्य संग्रह से २०, 'तोता क्यों रोता ?' काव्य संग्रह से ३६ एवं नूतन/अन्य २१ कविताओं सहित ५ खण्डों में प्रकाशित प्रकाशक-ज्ञानोदय प्रकाशन, पिसनहारी मढ़िया, जबलपुर-४८२ ००३, मध्यप्रदेश से प्रकाशित राज संस्करण१९८८, पृष्ठ-६+९२, मूल्य-६० रुपए। कन्नड़ कविताएँ - पिसनहारी मढ़िया, जबलपुर, मध्यप्रदेश में द्वितीय चातुर्मास १९८८ के दौरान कन्नड़ में लिखित ४ कविताएँ। सत्य की छाँव में - ज्ञानोदय प्रकाशन, पिसनहारी की मढ़िया, जबलपुर-४८२ ००३, मध्यप्रदेश, प्रथम आवृत्ति-१९८८, पृष्ठ - ३२, मूल्य-२ रुपए। दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र अन्तरिक्ष पार्श्वनाथजी, शिरपुर, वाशिम, महाराष्ट्र के सम्बन्ध में आचार्य श्री मदनकीर्ति कृत 'शासन-चतुस्त्रिंशिका' के पद्य का अनुवाद, १९९० । समागम (प्रवचन संग्रह), सम्पादक-मुनिश्री सुधासागरजी महाराज, प्रकाशक-भगवान् ऋषभदेव ग्रन्थमाला, श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र मन्दिर संघीजी, सांगानेर-३०३ ९०२, जयपुर, राजस्थान, फोन-(०१४१) २७३०३९०, प्रथमावृत्ति-१९९१, पृष्ठ-१०१, मूल्य-१५ रुपए। विद्या काव्य भारती (६ हिन्दी शतक एवं शारदा स्तुति का संकलन), प्रकाशक-श्री विद्यासागर शिक्षा समिति, कटंगी, जबलपुर, मध्यप्रदेश, द्वितीय आवृत्ति-१९९१, पृष्ठ-११२, मूल्य-१० रुपए। प्रवचनामृत (फिरोजाबाद, उत्तरप्रदेश, १९७५ के प्रवचन संग्रह, भाग-३), प्रकाशक-ज्ञानोदय प्रकाशन, पिसनहारी मढ़िया, जबलपुर-४८२ ००३, मध्यप्रदेश, संस्करण-१९९१, पृष्ठ-१२+२५ । पञ्चशती (संस्कृत में रचित ५ शतक, इन्हीं में से ३ शतकों का अन्वयार्थ, इन्हीं पाँचों शतकों का पद्यानुवाद आचार्य श्री विद्यासागरजी द्वारा एवं डॉ. पन्नालाल साहित्याचार्य द्वारा इन शतकों पर लिखित संस्कृत टीका एवं हिन्दी अर्थ), प्रकाशक-अजित प्रसाद जैन, ४१४१-आर्यपुरा, पुरानी सब्जीमण्डी, दिल्ली-११० ००६, फोन-(०११)२३८२९१२३, प्रथमावृत्ति-१९९१, पृष्ठ-१६+३५२ । धीवर की धी (प्रवचन), प्रकाशक - दुलीचन्द देवराज कुम्भारे परिवार, खापरखेड़ा , नागपुर, महाराष्ट्र, प्राप्तिस्थान-ज्ञानोदय प्रकाशन, पिसनहारी की मढ़िया, जबलपुर-४८२००३, मध्यप्रदेश, प्रथमावृत्ति-१९९२, पृष्ठ-३२। सीप के मोती (आचार्य श्री विद्यासागरजी की सूक्तियों का संचयन), प्रकाशक-ज्ञानोदय नवयुवक सभा, लार्डगंज जैन मन्दिर, जबलपुर-४८२ ००२, मध्यप्रदेश, प्रथम संस्करण-१९९३, पृष्ठ-३२, मूल्य-२ रुपए। २५. २८.

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