________________
" 'मूकमाटी' बहुत अद्भुत काव्य है। इस तरह के अमूर्त विषय पर किसी ने कार्य किया हो, ऐसा ध्यान में नहीं आता। मेरे मत से यह बहुत आधुनिक है, क्योंकि ये विज्ञान के लिए भी प्रेरित करता है। इसलिए मैं इसको 'फ्यूचर पोयट्री' एवं अच्छा दिशादर्शक मानता हूँ। अन्य कवियों के लिए भी यह प्रेरणादायक ग्रन्थ है।"
डॉ. प्रभाकर माचवे "कवि ने अत्यन्त कौशल के साथ अध्यात्म तत्त्व और कवित्व का सुन्दर समन्वय किया है। दर्शनशास्त्र तथा काव्यशास्त्र दोनों में निष्णात कवि की अभिव्यंजना शैली प्रौढ़ एवं अर्थगर्भित है। भाषा पुष्ट और अलंकृत है।"
डॉ. नगेन्द्र " 'मूकमाटी' में कवि की वाणी का चमत्कार देखने को मिलता है। कहीं शब्द प्रयोग में कोमला और उपनागरिका वृत्तियों की छटा है तो कहीं अनुप्रास, यमक और श्लेष के चमत्कार। भाषा पर, शब्दों पर कवि का विलक्षण अधिकार है कि एक ताल और लय के समान ध्वनि शब्द जैसे उसके इशारे पर नाचते हैं।"
डॉ. भगीरथ मिश्र "भवानीप्रसाद मिश्र की सपाट बयानी, अज्ञेय का शब्द विन्यास, निराला की छान्दसिक छटा, पन्त का प्रकृति व्यवहार, महादेवी की मसृण गीतात्मकता, नागार्जुन का लोकस्पन्दन, केदारनाथ अग्रवाल की बतकही वृत्ति, मुक्तिबोध की फैंटेसी संरचना और धूमिल की तुक संगति आधुनिक काव्य में एक साथ देखनी हो तो वह 'मूकमाटी' में देखी जा सकती है।"
प्रो. प्रेमशंकर रघुवंशी "जैनाचार्य सन्त कवि श्री विद्यासागर जी महाराज द्वारा विरचित 'मूकमाटी' युगप्रवर्तक महाकाव्य है। यह महाकाव्य ही नहीं, अपितु धर्म, दर्शन, अध्यात्म तथा चेतना का अभिनव शास्त्र है। यह आधुनिक युग की 'मनुस्मृति' और 'गीता' भी
डॉ. परमेश्वर शर्मा " 'मूकमाटी' हिन्दी का, कदाचित्, पहला ऐसा महाकाव्य है जिसमें अध्यात्म, दर्शन, संस्कृति, राजनीति, समाजनीति, अर्थनीति आदि को अतिसूक्ष्म एवं रोचक कथा के रूप में उपस्थित किया गया है। गहन चिन्तन, प्रभावक वर्णन, अभिनव काव्य सौष्ठव, मुक्त छन्द एवं सरल भाषा-शैली में रचित यह विलक्षण काव्यकृति हिन्दी साहित्य की विशिष्ट निधि के रूप में समादृत होगी, इसमें सन्देह नहीं।"
प्रो. (डॉ.) सीताराम झा 'श्याम' " 'मूकमाटी' केवल एक श्रेष्ठतम साहित्यिक कृति ही नहीं है अपितु उपनिषदों की श्रृंखला में यह एक और नया उपनिषद् है 'मृत्तिकोपनिषद्'।" आनन्द बल्लभ शर्मा 'सरोज' "खड़ी बोली और मुक्त छन्द में आध्यात्मिक आधार देकर लिखा गया 'मूकमाटी' पहला महाकाव्य है। काव्य की भाषा यद्यपि बहुत सरल है किन्तु अर्थ गूढ़ और मर्मस्पर्शी है।"
प्रो. (डॉ.)विजयेन्द्र स्नातक