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498 :: मूकमाटी-मीमांसा
सागार अन्न दिन में यदि दान देता,
ले साम्य धार, मुनि एषण पाल लेता ॥ ६३ ॥
. ...पाले उसे सतत साधु, सुखी बनाती" ॥ ६४ ॥ इस तरह तमाम विधि-निषेधमय नियम यहाँ बताए गए हैं। स्थान, समय, परिचय तथा मंगलकामना के साथ ग्रन्थ पूर्ण हुआ है। द्वादशानुप्रेक्षा (१९७९)
आचार्य कुन्दकुन्द स्वामी द्वारा प्राकृत भाषा में लिखे गए ग्रन्थ का यह पद्यानुवादात्मक भाषान्तरण है। द्वादश भावनाएँ ही द्वादश अनुप्रेक्षाएँ हैं :
"संसार, लोक, वृष, आसव, निर्जरा है, अन्यत्व और अशुचि, अध्रुव, संवरा है। एकत्व औ अशरणा अवबोधना ये;
भावे सुधी सतत द्वादश भावनायें"॥ १२ ॥ इसमें अनित्य, अशरण, एकत्व, अन्यत्व, संसार, लोक, अशुचि, आम्रव, संवर, निर्जरा, बोधिदुर्लभ तथा धर्म-इन अनुप्रेक्षाओं का मार्मिक विवरण दिया गया है। समन्तभद्र की भद्रता (२९ मार्च, १९८०)
आचार्य समन्तभद्र स्वामी की संस्कृत भाषा में एक रचना है - 'स्वयम्भू-स्तोत्रम्' । प्रस्तुत ग्रन्थ उसी कापद्यबद्ध भाषान्तरण है । इसमें स्तोतव्य चौबीस तीर्थंकरों का स्तवन किया गया है । जिनका स्तवन किया गया है, वे हैं श्री वृषभनाथ, अजितनाथ, शम्भवनाथ, अभिनन्दननाथ, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतलनाथ, श्रेयोनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ, धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ, मल्लिनाथ, मुनिसुव्रतनाथ, नमिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और अन्तत: वीर स्तवन के साथ यथापूर्व इस ग्रन्थ का भी समापन हुआ
गुणोदय (२६ अक्टूबर, १९८०)
आचार्य गुणभद्र प्रणीत संस्कृत भाषाबद्ध आत्मानुशासन' ग्रन्थ की आचार्यश्री द्वारा पद्यबद्ध हुई इस कृति में जिन दर्शन के दशविध सम्यग्दर्शनों का उल्लेख किया है-आज्ञा, मार्ग, सदुपदेश, सूत्र, बीज, समास (संक्षेप), विस्तृत (विस्तार) तथा अर्थ समुद्भव, अवगाढ़ और परमावगाढ़ सम्यक्त्व । इसमें इन सबका रहस्योद्घाटन किया गया है । कहा गया है :
“सद्गति सुख के साधक गुणगण जिन्हें अपेक्षित प्यारे हैं, दुर्गति दुख के कारण सारे हुए उपेक्षित खारे हैं। फलतः साधक को भजते हैं अधिक विधायक को तजते; सुनुध जनों में श्रेष्ठ रहें वे जन-जन हैं उनको भजते" ॥ १४५ ॥