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मूकमाटी-मीमांसा :: 435
संवादों की सजीवता, रोचकता तथा हास्य-व्यंग्य पाठक को आकर्षित करते हैं। इस महाकाव्य में चुटीले संवादों की योजना देखते ही बनती है । यह महाकाव्य ज्वलन्त समस्याओं को लेकर लिखा गया है। इसमें समस्याओं के कारणों पर प्रकाश डालते हुए उनके समाधान का भी प्रयत्न किया गया है। इसमें सबसे बड़ी समस्या निरीह, पद दलित, पीड़ित मानवता की है। समाज के घातक पूँजीवादी व्यक्ति पद दलित वर्गों के सामाजिक उत्थान में व्यवधान उपस्थित करते हैं जिससे व्यक्ति आर्थिक, सामाजिक आदि दृष्टियों से पिछड़ जाते हैं। कवि की मान्यता है कि अगर इन शोषित, पीड़ित व्यक्तियों को अच्छा सामाजिक परिवेश मिले तो वे भी अच्छे इनसान बन सकते हैं। दूसरी प्रमुख समस्या आतंकवाद की है । यह समस्या किसी एक देश की नहीं वरन् सम्पूर्ण विश्व की है । आचार्य श्री विद्यासागर का कहना है कि इस समस्या का हल क्षमा भाव से सम्भव हो सकता है।
इस महाकाव्य में शिल्प सम्बन्धी अनेक विशेषताएँ हैं, जिनका काव्य को मनोहारी एवं मर्मस्पर्शी बनाने में बहुत योगदान है :
१. लक्षणा और व्यंजना शब्द शक्तियों की योजना। २. लयात्मक मुक्त छन्दों का प्रयोग। ३. गुण और रीति का भावानुकूल उत्कृष्ट प्रयोग । ४. वृत्ति का आकर्षक विवेचन। ५. कवि ने भावों का वर्णन करते समय औचित्य तत्त्व पर भी विचार किया है। ६. वक्र उक्तियों की आलोच्य कृति में भरमार है। ७. लोकोक्तियों, मुहावरों एवं सूक्तियों का प्रसंगानुकूल प्रयोग हुआ है।
'मूकमाटी' महाकाव्य में प्रतीकों की सुन्दर योजना, अलंकारों की छटा, कथा की रोचकता, निर्जीव पात्रों के सजीव एवं चुटीले वार्तालापों की नाटकीयता तथा शब्दों की परतों को वेधकर आध्यात्मिक अर्थों की प्रतिष्ठा, यह सब कुछ सहज ही समा गया है । इस महाकाव्य में जहाँ स्वयं को और मानव के भविष्य को समझने के नए-नए आयाम सामने आते हैं, वहीं मानव समाज को चिन्तन की अद्भुत प्रेरणाएँ भी मिलती हैं।
पृष्ठ ५३ बीज का वपन लिया है.... - उस पकी फसलको.