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'मूकमाटी' : एक अमूल्य धरोहर
श्रीमती आराधना जैन वर्तमान युग के महान् सन्तशिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज ज्ञान, ध्यान एवं तप में लवलीन रहते हुए भी साहित्य साधना करते हैं। आचार्यश्री ने बाल ब्रह्मचारी अवस्था से सीधे मुनि दीक्षा ले ली। उस समय आपकी उम्र मात्र बाईस वर्ष की थी। आपने गुरुवर ज्ञानसागरजी महाराज से मात्र चार-पाँच वर्षों में ही संस्कृत, व्याकरण, साहित्य, जैन न्याय और जैन सिद्धान्त के चारों अनुयोगों का ज्ञान अर्जित कर लिया था।
इच्छा शक्ति तीव्र हो तो सब कुछ सम्भव है'- यह कर दिखाया है आपने । तब मात्र दो घण्टे ही निद्रा को आश्रय देकर आपने बाईस घण्टों तक विद्या का अभ्यास कर ज्ञान प्राप्त किया । आपका व्यक्तित्व जितना आकर्षक, कर्तृत्व भी उतना ही मनोहारी है । इस प्रकार आप मुनि पहले हैं या सन्त कवि – यह कहना उसी प्रकार कठिन है जैसे पहले बीज या फल ? 'हाथ कंगन को आरसी क्या' - आपकी कविता स्वयं ही प्रमाण देती है सशक्त होने का और समर्थ होने का :
"चोरी मत करो, चोरी मत करो/यह कहना केवल/धर्म का नाटक है उपरिल सभ्यता"उपचार !/चोर इतने पापी नहीं होते
जितने कि/चोरों को पैदा करने वाले ।" (पृ. ४६८) इस प्रकार 'मूकमाटी' एक सन्देश मात्र ही नहीं है वरन् एक प्रायोगिक एवं व्यावहारिक कृति भी है।
"ऋषि - सन्तों का/सदुपदेश - सदादेश/हमें यही मिला कि पापी से नहीं/पाप से/पंकज से नहीं,/पंक से घृणा करो।
अयि आर्य !/नर से/नारायण बनो/समयोचित कर कार्य ।" (पृ. ५०) इस प्रकार पूजा गुणों की होती है और पाप से घृणा होती है। पापी की भूलकर भी निन्दा नहीं करने का उपदेश धर्म देता है, क्योंकि आज का पापी कल परमात्मा बन सकता है । अत: आचार्यश्री की लेखनी जाति-पाँति और रूढ़िवाद की परम्पराओं को तोड़कर मानव जाति के उद्धार हेतु अवसर प्रदान करती है।
नव रसों का सरस वर्णन कर अन्त में करुण, वात्सल्य एवं शान्त रस के बारे में मौलिकता व्यक्त की है। कृतिकार का कहना है कि सभी रसों का अन्त होना ही शान्त रस है :
"करुणा-रस उसे माना है, जो/कठिनतम पाषाण को भी/मोम बना देता है, वात्सल्य का बाना है/जघनतम नादान को भी/सोम बना देता है। किन्तु, यह लौकिक/चमत्कार की बात हुई,/शान्त-रस का क्या कहें,
संयम-रत धीमान को हो/ ओम्' बना देता है।" (पृ. १५९-१६०) वीतरागता एवं अध्यात्म इन तीनों रसों के अन्तर दर्शन में सहज ही निःसृत हुआ है।
आचार्यश्री जहाँ शब्द खोजी हैं, प्रयोगधर्मी हैं, वहीं शब्द में गुम्फित अर्थ निकालने में उनका कोई सानी नहीं