________________
'मूकमाटी': जीवन का विज्ञान
डॉ. रामचन्द्र मालवीय समीक्ष्य महाकाव्य 'मूकमाटी' आचार्य विद्यासागर द्वारा रचा गया है। हमारा देश अपनी आदर्शवादी परम्परा के कारण एक ओर त्याग के मामले में जाना जाता है वहीं दूसरी ओर तपस्या और ज्ञान के मामले में भी आगे है। 'मूकमाटी' महाकाव्य के रचयिता आचार्य विद्यासागर जहाँ 'मूकमाटी' में अनेक तरह के आदर्श प्रस्तुत करते हैं, वहीं त्यागी और ज्ञानी के रूप में भी जाने जाते हैं।
भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित यह महाकाव्य चार खण्डों में है । और चार सौ अठासी पृष्ठों में यह प्रकाशित हुआ है। धर्म और ईश्वरीय भावना से ओतप्रोत 'मूकमाटी' महाकाव्य एक दर्शन विशेष का महत्त्वपूर्ण अंग है । महाकाव्य की परम्परागत परिभाषाओं से हटकर यदि विचार करें तो यह 'मूकमाटी' महाकाव्य, वस्तुत: ऐसा महाकाव्य है जो परिभाषाओं के अनेक पहलुओं को छूता है और अनेक नए पक्षों को जन्म देता है । 'मूकमाटी' महाकाव्य के मुख्य विषय हैं-'संकर नहीं : वर्ण-लाभ'; 'शब्द सो बोध नहीं : बोध सो शोध नहीं'; 'पुण्य का पालन: पाप-प्रक्षालन' एवं 'अग्नि की परीक्षा : चाँदी-सी राख'।
जैसा कि महाकाव्य का नाम है 'मूकमाटी', अत: इस के प्रथम खण्ड में माटी की उस प्राथमिक दशा के रचने की प्रक्रिया को व्यक्त किया गया है जहाँ वह छोटे रूप में कंकर एवं छोटे कणों से मिली-जुली अवस्था में है।
“भानु की निद्रा टूट तो गई है/परन्तु अभी वह/लेटा है माँ की मार्दव-गोद में,/मुख पर अंचल ले कर/करवटें ले रहा है । प्राची के अधरों पर/मन्द मधुरिम मुस्कान है/सर पर पल्ला नहीं है और
सिंदूरी धूल उड़ती-सी/रंगीन-राग की आभा-भाई है, भाई"!" (पृ. १) तात्पर्य यह कि कुम्भकार की कल्पना में माटी के मंगल घट को जो सार्थक रूप देना चाहा है, उसके लिए पहले सन्त कवि आचार्य विद्यासागर ने अपने तन और मन को मिट्टी की सुगन्ध से सुगन्धित किया है और फिर रचना की है महाकाव्य 'मूकमाटी' की। महाकाव्य में नवीनता, भाषिक सृजनशीलता तथा माटी का मुख्य प्रक्रिया सम्बन्धी काव्यचिन्तन रोचक और हृदयंगम भाषा में है।
एक प्रकार से माटी सम्बन्धी पूरा व्यवस्थित विवेचन हुआ है । महाकाव्य में आए माटी विषयक सूत्र और सन्दर्भ महत्त्वपूर्ण एवं विचारणीय हैं । महाकाव्य में मुख्यत: चारों खण्डों में आधुनिकता और उसके सन्दर्भ में सृजनशीलता, भाषा, संवेदना, व्यक्तित्व की स्वाधीनता आदि काव्यतत्त्व भी महत्त्वपूर्ण हैं । एक प्रकार से 'मूकमाटी' महाकाव्य सतत सृजन कर्म में प्रवृत्त प्रक्रिया है। पिछली अनेक महाकाव्यगत दृष्टियों से हटकर 'मूकमाटी' की काव्य दृष्टि में विशेषता है कि यह अमान्य मूल्यों पर रुकती नहीं है वरन् यह निरन्तर वैज्ञानिक मूल्यबोध की स्वीकारिता है :
"यह बात निराली है, कि/मौलिक मुक्ताओं का निधान सागर भी है/कारण कि मुक्ता का उपादान जल है,/यानी-जल ही मुक्ता का रूप धारण करता है ...स्वयं धरती ने सीप को प्रशिक्षित कर/सागर में प्रेषित किया है।"
(पृ. १९२-१९३) महाकाव्य की अपेक्षा के अनुसार महाकाव्य 'मूकमाटी' में प्राकृतिक परिवेश के अतिरिक्त काव्य सृजन के