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176 :: मूकमाटी-मीमांसा
कलश, स्फटिक झारी, राख आदि । यह बात यहाँ ध्यान में रखने की है कि अनेक उपकरण प्रतीकात्मकता एवं मानवीकरण दोनों शीर्षकों में परिगणित किए जाने योग्य हैं। शब्द शक्तियाँ : मूकमाटी' में अभिधा, लक्षणा एवं व्यंजना की परिभाषा (पृ. ११०) एक नए ही प्रकार से की गई है, साथ ही साहित्य' शब्द की परिभाषा भी इन शब्दों में प्रस्तुत है :
“हित से जो युक्त-समन्वित होता है/वह सहित माना है और/सहित का भाव हो/साहित्य बाना है, अर्थ यह हुआ कि/जिस.के अवलोकन से
सुख का समुद्भव-सम्पादन हो/सही साहित्य वही है।" (पृ. १११) भाषा : मूक माटी' ग्रन्थ अतुकान्त कविता में लिखा गया है। इसकी भाषा शुद्ध हिन्दी है । प्रवाह में सरल, वाग्धारा में स्फीत, शब्दों के संगुम्फन में सुष्ठु, वाक्य विन्यास में विमल । इसमें अनेक स्थानों पर भाषा सौकुमार्य मुहावरों एवं अलंकारों का समुचित प्रयोग है । यदा-कदा लोकोक्तियों को भी देखा जाता है : लोकोक्ति : 0 "दाँत मिले तो चने नहीं,/चने मिले तो दाँत नहीं,
____ और दोनों मिले तो"/पचाने को आँत नहीं...!" (पृ. ३१८)
0"पूत का लक्षण पालने में।" (पृ. १४ एवं ४८२) प्रथम की प्रारम्भिक दो पंक्तियों में जो मूल लोकोक्तियाँ हैं, उनमें आचार्यश्री ने अपनी ओर से अन्तिम दो पंक्तियों में परिवर्धन कर मानों अपूर्ण लोकोक्तियों को पूर्णता प्रदान की है। मुहावरे : 'बिना दाग होना' (पृ. २८), 'पकड़ में आना'(पृ. १२१), 'स्मिति का उभर आना' (पृ. १२६), 'लाल हो उठना' (पृ. ३७९)। कविता : आधुनिक युग में कविता प्रमुखतः पाठ्य हो गई है, किन्तु उसकी मूल प्रवृत्ति, गेयता को पूर्ण रूप से दबाना शक्य नहीं। वह जाने- अनजाने गेय हो ही जाती है । इस प्रवृत्ति के केवल दो-एक सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत हैं :
"शरण, चरण हैं आपके,/तारण-तरण जहाज,
भव-दधि तट तक ले चलो/करुणाकर गुरुराज !" (पृ. ३२५) यह विशुद्ध दोहा' है, अपने कर्म में भाषा को संवारता-सा ।
और तो और, गेयता प्रेरित कुछ पंक्तियाँ अतुकान्त ढाँचे में से चुनी जा सकती हैं। उन्हें सहज ही प्रच्छन्न रूप में विद्यमान पाया गया और एक सुन्दर रुबाई उपलब्ध हुई । देखिए :
"क्रोध-भाव का शमन हो रहा है। -१ ...पल - प्रतिपल/पाप-निधि का प्रतिनिधि बना प्रतिशोध-भाव का वमन हो रहा है।-२ पल - प्रतिपल/पुण्य-निधि का प्रतिनिधि बना बोध-भाव का आगमन हो रहा है, और/अनुभूति का प्रतिनिधि बना -३