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मूकमाटी-मीमांसा :: 239
के आधार पर ही निर्धारित किए गए हैं। फिर भी उन पर विचार करना संगत है । आधुनिक हिन्दी महाकाव्यों पर संस्कृत के महाकाव्य की ही छाप है, फिर भी अनेक लक्षणों की अवहेलना भी नज़र आती है। हिन्दी के प्रमुख समीक्षकों के महाकाव्य विषयक मानदण्ड निम्नानुसार हैं :
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने महाकाव्य के स्वरूप पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला है । उन्होंने चार तत्त्वों को महत्त्वपूर्ण माना है-इतिवृत्त, वस्तु व्यापार वर्णन, भाव व्यंजना तथा संवाद ।
___ डॉ. श्याम सुन्दर दास के अनुसार महाकाव्य में महत् उद्देश्य, उदात्त आशय और संस्कृति का चित्रण होना चाहिए।
___ आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने महाकाव्य के तीन लक्षण माने हैं-रचना का प्रबन्धात्मक या सर्गबद्ध होना, शैली की गम्भीरता और वर्णित विषय की व्यापकता एवं महत्त्व ।
डॉ. नगेन्द्र ने महाकाव्य के चार आधारभूत तत्त्व निर्धारित किए हैं- उदात्त कथानक, उदात्त कार्य या उद्देश्य, उदात्त चरित्र और उदात्त भाव-शैली । औदात्त्य ही महाकाव्य का प्राण है।
डॉ. नगेन्द्र द्वारा महाकाव्यालोचन के निर्धारित मानदण्डों के आधार पर किसी भी काव्य कृति के महाकाव्यत्व का आकलन किया जा सकना समुचित प्रतीत होता है । यद्यपि सर्वथा पूर्ण और सर्वमान्य मानदण्ड निर्धारित करना तो अत्यन्त कठिन है क्योंकि परिस्थितियों, परम्पराओं और मान्यताओं में परिवर्तन होता रहता है। आचार्यों के अनुसार महाकाव्य का आकार इस प्रकार निर्धारित होता है- (१) महाकाव्य का शरीर (२) महाकाव्य की आत्मा।
(१) शरीर- सर्ग रचना, नामकरण, अलंकार, भाषा, छन्द, वस्तुस्थिति एवं पात्र विश्लेषण, वर्ण्य विषय,
प्रकृति (ऋतुएँ)- संसार, पारिवारिक एवं सामाजिक सम्बन्ध आदि । (२) आत्मा- रस, भाव, नायक का चरित्र, लौकिक-अलौकिक का समन्वय, दैवी और आसुरी प्रवृत्तियों का ___ सम्पर्क।
उपर्युक्त आधारों पर 'मूकमाटी' महाकाव्य का महत् उद्देश्य मानव संस्कृति का संरक्षण और संवर्द्धन है । कृतिकार ने 'मानस-तरंग' में स्वत: व्यक्त किया है : “जिसने शुद्ध-सात्त्विक भावों से सम्बन्धित जीवन को धर्म कहा है; जिसका प्रयोजन सामाजिक, शैक्षणिक, राजनैतिक और धार्मिक क्षेत्रों में प्रविष्ट हुई कुरीतियों को निर्मूल करना है और युग को शुभ-संस्कारों से संस्कारित कर भोग से योग की ओर मोड़ देकर वीतराग श्रमण-संस्कृति को जीवित रखना है और जिसका नामकरण हुआ है 'मूकमाटी'।"
श्रमण-संस्कृति मानव संस्कृति का वाचक है, क्योंकि कृतिकार युग को ऐसे मानव संस्कारों से संस्कारित करना चाहता है, जो मानव कल्याण के लिए उपयोगी हैं । भौतिकता की चकाचौंध से चकराए मानव को सही दिशाबोध देना 'मूकमाटी' का लक्ष्य है, जिस प्रकार 'भारत-भारती' में स्व. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तजी का सन्देश है :
"हम कौन थे, क्या हो गये हैं और क्या होंगे अभी।
आओ विचारें आज मिलकर/यह समस्यायें सभी !!" (भारत-भारती : गुप्त) इसी प्रकार का भाव जयशंकर प्रसाद की इन पंक्तियों से अभिव्यक्त होता है :
"जगे हम लगे जगाने विश्व/लोक में फैला फिर आलोक।
व्योम-तम पुंज हुआ तब नष्ट/अखिल संस्कृति हो उठी अशोक ॥" आज हम अपनी आत्मीयता में सांस्कृतिक मूल्यांकन करने में असमर्थ हैं । ऐसी स्थिति में हमारा भविष्य क्या