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252 :: मूकमाटी-मीमांसा करने वाला महान् मानवतावादी सन्देश प्रसारित हुआ, जो समग्र मानव जाति की थाती है । इस महाकाव्य के जीवनदर्शन में ऐसी सांस्कृतिक, दार्शनिक एवं आध्यात्मिक मानवीय निष्ठाएँ प्रतिफलित हुई हैं, जो अनन्त काल तक मानव जाति की प्रेरणा का अजस्र स्रोत बन कर उसे आप्लावित करती रहेंगी। साहित्यिक महत्त्व की दृष्टि से महाकाव्य काव्य की रूप-रचना में महाकाव्यत्व का जो विकास हुआ है, वह महत्त्वपूर्ण सृजनात्मक एवं काव्यशास्त्रीय उपलब्धि कही जाएगी।
_ अन्त में, विद्वान् लेखक लक्ष्मीचन्द्र जैन का यह कथन उद्धृत करना प्रासंगिक कर्तव्य समझता हूँ : “यह कृति अधिक परिमाण में काव्य है या अध्यात्म, कहना कठिन है । लेकिन निश्चय ही यह है आधुनिक जीवन का अभिनव शास्त्र । और, जिस प्रकार शास्त्र का श्रद्धापूर्वक स्वाध्याय करना होता है, गुरु से जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करना होता है, उसी प्रकार इसका अध्ययन और मनन अद्भुत सुख और सन्तोष देगा, ऐसा विश्वास है ।” ('प्रस्तवन पृ. XVII)
__ अन्तत: कहा जा सकता है कि 'मूकमाटी' को उद्देश्य, कथावस्तु, चरित्र तत्त्व, जीवन दर्शन, शिल्प विधान, रस, अलंकार, छन्द, भाषा, शैली, शीर्षक एवं नवीन परिकल्पना आदि के समुचित मानदण्डों की कसौटी पर कसने पर यह सहज ही एक अनुपम आधुनिक महाकाव्य की गरिमा से मण्डित हो जाता है । सन्त-कवि आचार्य श्री विद्यासागरजी के सम्पूर्ण साहित्य का सिंहावलोकन करने पर यह कहना समीचीन होगा कि सन्त-कवि ने काव्य की विस्तृत पट-भूमि पर अपनी विराट्, सधी तूलिका से जो चित्र आँके हैं, उनके रंग न कभी धुंधले होंगे और न कभी रेखाएँ ही मिटेंगी।
पृष्ठं १०० हमें अपने शील-स्वभाष से/--... दाग नहीं लगा पातीं वह