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: मूकमाटी-मीमांसा
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"कई सूक्तियाँ / प्रेरणा देती पंक्तियाँ / कई उदाहरण दृष्टान्त नयी पुरानी दृष्टियाँ / और वे / दुर्लभतम अनुभूतियाँ ।” (पृ. ४७३ )
" बाली से बदला लेना / ठान लिया था दशानन ने / फिर क्या मिला फल ? ... राक्षस की ध्वनि में रो पड़ा / तभी उसका नाम / रावण पड़ा । " (पृ. ९८ ) “ यातनायें पीड़ायें ये ! / कितनी तरह की वेदनायें / कितनी और आगे कब तक'""पता नहीं / इनका छोर है या नहीं !" (पृ. ४)
"कुम्भ के भाग में क्या / विकलता - शून्यता लिखी है कुम्भ
त्या में क्या / विकलता न्यूनता रही है ?" (पृ. ४४१)
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और इन सबका समाधान है जीवन सम्बन्धी प्रश्नों के उत्तर में :
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" दोष के कणों में / त्रास तड़पन - तंग / ह्रास का प्रसंग और गुणों का / कोष नज़र आ रहा है।" (पृ. २१)
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“काव्य सबसे पहले शब्द है । और सबसे अन्त में भी यही बात बच जाती है" - ( अज्ञेय), यही सोच तो आचार्यप्रवर की भी है- 'शब्द सो बोध नहीं : बोध सो शोध नहीं' नामक दूसरे खण्ड में, भले ही प्रक्रिया भिन्न हो । कविता उत्कृष्टतम शब्दों का उत्कृष्टतम क्रम है । और 'मूकमाटी' में शब्दों का उत्कृष्टतम क्रम दर्शनीय भी है और ग्राह्य भी ।
डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी के अनुसार : “आधुनिक कविता का मर्म ग्रहण करने के लिए काव्य भाषा का उपादान ही एकमात्र विश्वसनीय माध्यम रह गया है ।" किन्तु यह तटस्थ और वस्तुनिष्ठ होनी चाहिए। यह तटस्थता और वस्तुनिष्ठता और कुछ नहीं अपितु सत्य, मानव सत्य की खोज ही भाषा का आधार बनती है । और यह सत्य, अनुभूत सत्य है, जिसकी सहज अभिव्यक्ति ही कविता का सौन्दर्य है । तभी तो यह कहा जाता है कि भाषा कवि के अनुभव और ज्ञान का साधन है । कविवर ने लोक जीवन से बोलचाल के शब्दों को लेकर उन्हें नई अर्थवत्ता से सम्पृक्त किया, शब्दों में नए-नए अर्थ की उद्भावना की है। कुंभ, गद-हा, नारी, अबला, कुमारी, स्त्री आदि में कविता मूर्त होती है। 'मूकमाटी' में माटी की मूर्त्तता इस कथन का प्रमाण है और इस मूर्तता का आधार है - बिम्ब । केदारनाथ सिंह के शब्दों में : "बिम्ब विधान का सम्बन्ध जितना काव्य की विषय-वस्तु से होता है, उतना ही उसके रूप से भी । विषय को वह मूर्त और ग्राह्य बनाता है, रूप को संक्षिप्त और दीप्त ।" आधुनिक कवि एवं उसकी समीक्षा का आधार आज हैबिम्ब । डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी आदि भी इस आधार की अनिवार्यता पर जोर देते हैं। यह अलग बात है कि सायास बिम्ब कविता के सौन्दर्य पर चोट करते हैं, इसलिए सहज और अनायास स्थान पाए बिम्ब ही कविता की आत्मा होते हैं । यद्यपि रूसी आलोचक बिम्ब की अनिवार्यता नहीं स्वीकारते, किन्तु इसकी अनिवार्यता को नकारा नहीं जा सकता । 'मूकमाटी' में यह बिम्ब प्रक्रिया उपर्युक्त दोनों स्तरों पर सक्रिय है । उदाहरणार्थ माँ का एक बिम्ब :
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"माँ की उदारता - परोपकारिता / अपने वक्षस्थल पर
युगों-युगों से चिर से / दुग्ध से भरे / दो कलश ले खड़ी है।" (पृ. ४७६) " लज्जा के घूँघट में/ डूबती-सी कुमुदिनी
प्रभाकर के कर- छुवन से / बचना चाहती है वह ।” (पृ. २)