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मूकमाटी-मीमांसा :: 321
आत्मोपलब्धि होगी:
“इसीलिए इन/शब्दों पर विश्वास लाओ,/हाँ, हाँ !! विश्वास को अनुभूति मिलेगी/अवश्य मिलेगी/मगर
मार्ग में नहीं, मंजिल पर !" (पृ.४८८) इस प्रकार 'मूकमाटी' महाकाव्य में काव्य एवं दर्शन का सहज समन्वय दृष्टिगोचर होता है । दल-बहुलता को दर्शाते हुए वर्तमान राजनीति और स्वार्थभाव का दूषित मानस संकेतित है । नायक-नायिका मांसल स्वरूपी या परिवेशवासी नहीं हैं अपितु प्रकृतिवादी हैं। अध्यात्म की गहनता से कुम्भकार नायक और माटी नायिका तो है परन्तु जीवनरूपी घट के निर्माण में साधनारत कर्मयोगी सदृश्य । महाकाव्य का नाम सार्थक, आकर्षक और आध्यात्मिकता की परतों में लिपटा हुआ है।
___ मूकमाटी को आधार बनाकर लिखी गई यह काव्यकृति हिन्दी के गौरव ग्रन्थों में निर्विवाद रूप से शीर्षस्थ स्थान प्राप्त करने योग्य है । मूकमाटी, जिससे मनुष्य का अस्तित्व निर्मित होता है, पोषित होता है और सँवर कर उसी में लीन होता है, उसी मूकमाटी का कुम्भ और कुम्भकार के माध्यम से जीवन सात्त्विक, कल्याणकारी दिशा प्राप्त कर सकता
_ 'मूकमाटी' का मूक सन्देश आत्मिक बल से ग्रहण कर, त्याग व परमार्थ के आचरण से सार्थक कर, मानवजीवन को सफल बनाया जा सकता है । माटी के दीया के सदृश्य उर में स्नेह भर जलन और कष्टों को पीकर अन्यों का मार्ग प्रशस्त कर गौरवशाली जीवन को धन्य किया जा सकता है।
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लज्जाके यट मेंडूबती. सी कुमुदिनीप्रभाकर के कर-खुवन से बचना चारती है वह
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