________________
350 :: मूकमाटी-मीमांसा आस्था कहाँ है समाजवाद में तुम्हारी ?/सबसे आगे मैं/समाज बाद में !"
(पृ. ४६०) इन विकृतियों, समस्याओं के कारण ही सारे मानव समुदाय में दुःख और क्लान्ति,विनाश और विध्वंस के बादल मँडरा रहे हैं। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति का दुश्मन हो रहा है । आचार-विचार, आहार-विहार सभी कुछ दूषित होता जा रहा है। इन विद्रूपताओं से निपटने के लिए मानव मात्र ही उत्तरदायी होगा। वह जैसा करेगा, वैसा ही भरेगा। अतएव जीवनोत्थान के लिए, सुख-शान्ति के लिए आचार्य श्री विद्यासागर ने उन आदर्शों पर बल दिया है जो समस्त मानव जाति में संजीवनी की तरह अमरत्व लाते हैं। आचारवादिता - 'मूकमाटी' में आध्यात्मिक पक्ष : मोह-माया का प्रपंच बड़ा ही प्रबल होता है । इसके प्रभाव से प्रभावित हुए बगैर कोई भी नहीं रह सकता। फिर भी मानव को चाहिए कि वह सात्त्विक जीवन व्यतीत करे, क्योंकि प्रपंचमय जीवन कभी भी शान्ति प्रदान नहीं कर सकता । विषय और कषायें जीवन का सर्वनाश कर देती हैं। उनका बहाव इतना तीव्रतम होता है कि अपने आपको रोक पाना अत्यधिक कठिन है । आचार्यश्री ने मानव जगत् को इस बहाव में न बहने की बात बतलाई है :
_ "अपने जीवन-काल में/छली मछलियों-सी/छली नहीं बनना
विषयों की लहरों में/भूल कर भी/मत चली बनना !" (पृ. ८७) परिग्रह का प्रभाव समकालीन समय में दिनोंदिन बढ़ता ही चला जा रहा है। संग्रह की यह प्रवृत्ति अन्तहीन है। दूसरे शब्दों में इसे हम लोभ की प्रवृत्ति भी कह सकते हैं। यह प्रवृत्ति मानव जाति में ही ज्यादातर देखने को मिलती है, इतर प्राणियों में नहीं। इसका मूल कारण मानव का मन ही है जो उसे इस ओर प्रवत्त कर रहा है। इसीलिए इस धरित्री के प्राणियों में सर्वाधिक खतरनाक प्राणी भी मानव ही है।
ईश्वरीय, प्रभु, भगवत् सत्ता सर्वमान्य सत्य है। इस सत्य को कदापि नहीं झुठलाया जा सकता। हाँ, बहलाया अवश्य जा सकता है । अत: मानव को चाहिए कि वह इस सत्ता के अनुसार ही जीवन को स्वतन्त्र रूप से चलने दें, उसमें किसी भी प्रकार की टोका-टाकी न करे, क्योंकि अनेक प्रकार के प्रलोभन जहाँ जीवन को दुराग्रही बनाते हैं, वहीं उसकी वास्तविकता भी लगभग समाप्तप्राय हो जाती है :
. “मानव के सिवा/इतर प्राणि-गण/अपने जीवन-काल में
परिग्रह का संग्रह करते भी कब ?" (पृ. ३८६) “सूखा प्रलोभन मत दिया करो/स्वाश्रित जीवन जिया करो,
कपटता की पटुता को/जलांजलि दो !" (पृ. ३८७) समकालीन समय में एकता की आवश्यकता है, साथ ही संगठित होने की आवश्यकता भी है। तभी हम प्रत्येक चुनौतियों का डटकर मुकाबला कर सकेंगे। राजनैतिक स्थितियाँ दिनोंदिन भयावह होती जा रही हैं । स्वार्थ के कारण मदान्ध पड़ोसी देश, हमारे देश के भू-भाग को हड़पने का दुस्साहस करने का विचार कर रहे हैं । यह अशुभ संकेत है। इससे बचने के लिए धन-संग्रह कम, किन्तु जन-संग्रह की मूलभूत आवश्यकता है। अब समय आ गया है जब हमें धन के लोभ का परित्याग करना चाहिए। धन को बाँटकर ऐसी चीज अर्जित करना चाहिए जो हमें और हमारे राष्ट्र दोनों के लिए शुभप्रद हो।