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390 :: मूकमाटी-मीमांसा आनन्द की मानी गई । इन प्रतिबन्धों के परिप्रेक्ष्य में हमें 'मूकमाटी' के सम्बन्ध में विचार करना है।
'मूकमाटी' मूलत: अध्यात्म और दर्शन का काव्य है। इस ग्रन्थ में अधिकांश पात्र अमूर्त और जड़ हैं। दो ही पात्र मूर्त और जीवन्त हैं। माँ धरती, माटी, कुम्भ और अन्य पात्र कथानक में प्रतीक हैं। 'मूकमाटी' का नायक : शिल्पी अर्थात् कुम्भ का रचनाकार कथानक का नायक है । शिल्पी का चरित्र उसके शिल्प से ही स्पष्ट हो जाता है। आज के सन्दर्भ में शिल्पी जाति का अभिजात्य होने पर विचार करना समीचीन नहीं । आचार्य विद्यासागर की यह मान्यता है कि कलाकार, शिल्पी, साधु, अभिनेता, गुणवान्, विद्वान्, कवि, चितेरे की भी भला कोई जाति होती है ? वह तो गुणवान् होता है। अपनी कला, गुण, सृजनशीलता या रचनाधर्मिता के कारण शिल्पी का चरित्र चित्रण किसी धीरोदात्त से कम नहीं है। अत: 'मूकमाटी' का नायक भले ही धीरोदात्त नहीं है, किन्तु परम्परागत ढंग से तो धीरोदात्त कोटि का अवश्य है । ग्रन्थ के दार्शनिक रचनाविधान से उसमें से सभी मानवीय गुण समय-समय पर दिखाई देते रहते हैं। मोक्षदायक मंगल कलश की रचना, ऐसा मंगल कलश जो आतंकवाद को चारों खाने चित्त कर
ता है.माटी में गणवत्ता लाकर उसे जीवन्त कर देती है. यानी जडता में चेतना का समावेशी है 'मकमाटी' का नायक । इसे कविवर विद्यासागर ने स्वयं 'भाग्यवान्' और 'भाग्य विधाता' कहा है :
" 'कुं' यानी धरती/और/'भ' यानी भाग्य-/यहाँ पर जो
भाग्यवान् भाग्य-विधाता हो/कुम्भकार कहलाता है ।" (पृ. २८) ओंकार को नमन करने वाला अहंकार से दूर शिल्पी युगद्रष्टा है । वह प्राणियों में वर्ण मैत्री का समर्थक है । वर्ण संकरता उसे रुचती नहीं है तथा वह किसी से वैर भाव भी नहीं रखता है। दोषों के प्रति लोगों को चैतन्य करना चाहता है। अत: 'मूकमाटी' का नायक धीरोदात्त से किसी भी प्रकार कम नहीं है । शिल्पी नरश्रेष्ठ सज्जन भी है। कथानक ऐतिहासिक : शुभाशुभ कर्मों का पूर्वाभास मनुष्य को होता है, ऐसी अनेक कथाएँ इतिहास में हैं। महावीर स्वामी (वर्द्धमान) के जन्म का पूर्वाभास महारानी त्रिशला को स्वप्न में ही हुआ था। सोलह स्वप्नों का वृत्तान्त सुनते ही ज्ञानी पिता को आभास हो गया था कि मेरी रानी की कोख में किसी यशस्वी पुत्र का जन्म/आगमन हो रहा है। महारानी त्रिशला को सोलह स्वप्नों में एक मंगल कलश का स्वप्न भी था।
'मूकमाटी' के कथानक में भी जो कथा है, वह स्वप्न पर आधारित है। नगर के श्रद्धालु सेठ, जिसकी परमात्मा के प्रति आसक्ति है, वह अपने गुरु को आहार दान के लिए लालायित है । इसी बीच उसे स्वप्न आता है कि माटी के घट में पवित्र जल से गुरु को आहार दान रूप जलदान करो। शिल्पी द्वारा तैयार किया गया माटी का घट मंगल कलश के रूप में सपरिवार सेट के लिए सामाजिक आतताइयों से मोक्षदाता सिद्ध होता है, तमाम भव बाधाओं को हरता हुआ। अतः 'मूकमाटी' का कथानक ऐतिहासिक है।
कलश का स्वच्छ जल आत्म शुद्धि का प्रतीक है । इसी कलश के जल से गुरु को जलदान और जलदान की परिणति मोक्षमूलक होने की एक और कथा भी ग्रन्थों में पाई जाती है । 'मूकमाटी' का कथानक ऐहलौकिकता से पारलौकिकता की ओर ले जाने की कहानी दुहराता है । षड्द्रव्यों के सार तत्त्व में झाँक कर देखा जाए तो लौकिक और पारलौकिकता का सन्देश देने वाले अनेक कथानक हमारे ग्रन्थों में समाहित हैं। 'मूकमाटी' का कथानक पूर्णतया परमात्मा में आस्था रखने वाले तथा गुरु के प्रति श्रद्धावान् व अत्यन्त सज्जन एक भक्त का है।
मूल कथा के साथ-साथ जो कथाएँ चलती हैं, उन्हें प्रासंगिक कथाएँ कहा जा सकता है। 'मूकमाटी' में श्रद्धालु सेठ की कथा और मुक्ता वर्षा के उपरान्त राज मण्डली द्वारा बलात् मोती बटोरने की कथाएँ भी हैं। प्रासंगिक कथा के दो भेद होते हैं-पताका और प्रकरी।