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402 :: मूकमाटी-मीमांसा
'नि-नी' पूर्व प्रत्यय तथा 'निहारती' में प्रयुक्त 'नि' पूर्व प्रत्यय अलग-अलग अर्थों के बोधक हैं। पहला 'नि' निषेधार्थी है तो दूसरा 'नि' निश्चयार्थी ।
'निर्माण' शब्द में प्रयुक्त 'निर्' पूर्व प्रत्यय तथा 'निरभिमान' शब्द में प्रयुक्त पूर्व प्रत्यय 'निर्' अलग-अलग अर्थों के परिचायक हैं। पहला 'निर्' निश्चयार्थी है तथा दूसरा 'निर्' निषेधार्थी है । निश्चयार्थी पूर्व प्रत्यय 'निर्’ निरन्तरता बोधक भी है ।
'मूकमाटी' महाकाव्य में एकाधिक पूर्व प्रत्यय एक ही अर्थ को व्यक्त तथा स्पष्ट करते हैं । 'निर्, निश् तथा नि:' पूर्व प्रत्यय रचना स्तर पर पृथक् पृथक् हैं । परन्तु तीनों ही निषेधवाची हैं। तीनों पूर्व प्रत्ययों का प्रयोग अपने बाद आने वाली ध्वनियों की प्रकृति से अनुशासित तथा नियन्त्रित होता है। एक ही अर्थ के बोधक एकाधिक पूर्व प्रत्यय एकाधिक भाषाओं अथवा बोलियों से सम्बद्ध माने जाएँगे। एक ही अर्थ के बोधक उक्त तीनों पूर्व प्रत्यय यह सिद्ध करते हैं कि संस्कृत के निर्माण की प्रक्रिया में अनेक लोकबोलियाँ क्रियाशील थीं। 'निर्' पूर्व प्रत्यय एक ओर निरन्तरता का बोधक है तो दूसरी ओर निषेधात्मकता का परिचायक भी। दो स्वतन्त्र अर्थों का द्योतक होने के कारण यह व्युत्पत्ति स्तर पर दो अलग-अलग शब्द मूलों से व्युत्पन्न माना जाएगा ।
'मूकमाटी' महाकाव्य की भाषा में निम्नांकित प्रकार के शब्द साधक प्रत्यय प्रयुक्त हुए हैं :
१. संज्ञा बनाने वाले परप्रत्यय
२. विशेषण बनाने वाले परप्रत्यय
३. क्रिया बनाने वाले परप्रत्यय
४. क्रिया विशेषण बनाने वाले पर प्रत्यय
संज्ञा बनाने वाले शब्द साधक प्रत्यय या परप्रत्यय निम्नांकित प्रकार के हैं :
१. संज्ञा से संज्ञा बनाने वाले शब्द साधक प्रत्यय या परप्रत्यय हैं - मानवता (पृ. ८१), लहराई (पृ. ५२), करुणाई (पृ. १५१), लड़कपन (पृ.), बगुलाई (पृ. ७२), हरिता (पृ. १७९), पथिक (पृ. १७२), तामसता (पृ.९४), मित्रता (पृ. २९) ।
उपर्युक्त शब्दों में परप्रत्यय प्रयुक्त हुए हैं- ता, आई, ई, पन, इक । उपर्युक्त परप्रत्यय जातिवाचक तथा व्यक्तिवाचक संज्ञा शब्दों के अन्त में प्रयुक्त होकर भाववाचक संज्ञा शब्दों का निर्माण करते हैं ।
'अहमियत', 'ममता', 'ममत्व', 'अपनापन' या 'अपनत्व' आदि शब्दों में ये परप्रत्यय प्रयुक्त हुए है'इयत, ता, त्व, पन'। ये परप्रत्यय सर्वनाम शब्दों के अन्त में प्रयुक्त होकर भाववाचक संज्ञा शब्दों का निर्माण कर रहे हैं। उपर्युक्त चारों परप्रत्यय एक ही शब्द-कोटि का निर्माण करने के कारण ऐतिहासिक स्तर पर अलग-अलग भाषा अथवा बोली भेदों से सम्बद्ध कहे जाएँगे ।
'नरमाई (पृ. ६३), कटुता (पृ. ८), नीलिमा (पृ. १), नूतनपन (पृ. ५८), खुरदरापन (पृ. २४), गीलापन' (पृ. १६५) आदि शब्दों में 'आई, ता, इमा तथा पन' परप्रत्यय भाववाचक संज्ञा बना रहे हैं। उक्त परप्रत्यय विशेषण शब्द वर्ग से भाववाचक संज्ञा शब्द वर्ग का निर्माण कर रहे हैं ।
'बहाव (पृ. ११४), ठहराव (पृ. ८९), लहराई (पृ. ५२), मुड़न (पृ. २९), जुड़न (पृ. २९), क्रुधन (पृ.३०), सृजन' (पृ. १६) इत्यादि क्रिया शब्दों में प्रयुक्त 'आव, आई, अन, न' आदि परप्रत्यय भाववाचक संज्ञा शब्दों का निर्माण कर रहे हैं।
विभिन्न शब्द वर्गों से भाववाचक संज्ञा शब्दों की रचना में समान असमान दो प्रकार के परप्रत्यय प्रयुक्त हुए हैं । ये सभी परप्रत्यय रचना तथा प्रयोग प्रक्रिया में ऐतिहासिक तथा सांकालिक स्तर पर अनेक स्वतन्त्र बोली प्रयोगों को सिद्ध करते हैं, साथ ही भाववाचक संज्ञा शब्दों के निर्माण की प्रक्रिया को भी प्रशस्त करते हैं ।
'मूकमाटी' महाकाव्य में विशेषण शब्द वर्ग का निर्माण करने वाले निम्नलिखित परप्रत्यय प्रयुक्त हुए हैं : १. संज्ञा से विशेषण बनाने वाले परप्रत्यय विशेषण से विशेषण बनाने वाले परप्रत्यय
२.